For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिदृश्य
  

(1)

फर्क 

दो लड़कियां दोनों ही सुन्दर , 

उम्र थी सत्रह से कम ।

वस्त्र तन पर बहुत सीमित,

दिखाते ज्यादा छुपाते कम ।

झांकते यौवन ने उनके ।

ध्यान था सबका बटोरा ।

फर्क था बस एक ही 

कि एक के हाथ में था 

मोटा पर्स 

और  एक के हाथ में !

खाली कटोरा ।


(2)

पात्रता 


जिस पर यकीं  न हो सहसा ।

ऐसा ही हो गया था हादसा ।

एक सुहानी शाम ,

नहीं था कोई काम ।

मैं , खुद में ही मगन ।

निहारता हुआ गगन ।

चला जा रहा था,

मस्ती में चूर ।

तभी दिखीं दो वालाएँ ।

यौवन से भरपूर ।

एक उर्वशी एक रम्भा । 

मगर बड़ा ही अचम्भा ।

भीख मांग रहीं थीं ।

इठलाती हुई ।

वल खाती हुई ।

जिस दुकान में जाती ।

कुछ न कुछ ले आतीं ।

उनकी तरफ 

मेरी भी नजर गढ़ी थी।

तभी  देखा मेरे सामने ,

एक बुडिया खढी थी ।

अपनी झोली फैला कर ।

आंख्नो में आंसू ला कर ।

बोली बेटा,

मैं बहुत दुखी हूँ ।

कल से भूंखी हूँ ।

मेरे लिए तो जमाना कड़का है ।

मगर तू तो भला लड़का है ।

मुझे खाना खिला दे ।

एक कप चाय पिला दे ।

फिर बोली ,

आजकल कौन देखता है मन ।

उनके (लड़कियों के ) ,

पास है यौवन ।

मिल जाता है धन ।

क्या तू जानता है ? 

आजकल भीख देने के लिए भी,

लोग देखते है तन




Views: 446

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 5, 2012 at 8:34am

मुकेश जी सादर प्रणाम !

आज के लोगों की मानसिकता को दर्शाती रचना. बधाई.
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 7, 2012 at 7:59am

आजकल भीख देने के लिए भी,

लोग देखते है तन

आदरणीय मुकेश जी,

समाज में व्याप्त विद्रूपताओं और क्रूर कटु यथार्थ को अपनी सहज किन्तु प्रवाहमयी भाषा में आपने बखूबी उजागर किया है| बधाईयां!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2012 at 11:04pm

मुकेश जी, यह है कविता, चाहे जिस तराजू पर तोला जाय कही से कमतर नहीं है , कथ्य और शिल्प दोनों, वाह वाह, बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 10:17pm

aadarniya, mukesh ji, sadar , bilkul vastvik chitran aaj ke samaj ka, sundar prastuti ke sath. badhai.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 9:22pm

यथार्थ के  गहन दर्शन का समावेश करती रचना पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 7:33pm

आदरणीय मुकेश जी,

समाज में व्याप्त विद्रूपताओं और क्रूर कटु यथार्थ को अपनी सहज किन्तु प्रवाहमयी भाषा में आपने बखूबी उजागर किया है| बधाईयां!

Comment by Abhinav Arun on April 6, 2012 at 3:42pm
आजकल भीख देने के लिए भी,

लोग देखते है तन।

kya कहने अरसे बाद यथार्थ की ऐसी सशक्त अभिव्यक्ति पढ़ी .. सरल भाषा विन्यास में भी चित्र सशक्त रूप से उभरे हैं हार्दिक बधाई !!
Comment by Er. Ambarish Srivastava on April 6, 2012 at 3:26pm

//झांकते यौवन ने उनके ।

ध्यान था सबका बटोरा ।

फर्क था बस एक ही 

कि एक के हाथ में था 

मोटा पर्स 

और  एक के हाथ में !

खाली कटोरा ।//

//आजकल कौन देखता है मन ।

उनके पास है यौवन ।

मिल जाता है धन ।

क्या तू जानता है ? 

आजकल भीख देने के लिए भी,

लोग देखते है तन ।//

भाई मुकेश कुमार जी ! उत्तम प्रवाह से युक्त आपकी दोनों ही रचनाएँ मर्मस्थल पर सीधा वार करती हैं !  बहुत-बहुत बधाई मित्र !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service