मोबाइल घर
(दोस्तों हम लोगों की एक जमात से बन गयी है जहाँ एक कवि लिखता है और दूसरा पढता है मंझे हुए कवि मंझी हुई कविता सब कुछ एकदम प्रोफेशनल मगर कोई स्थिति जिसको आप ने देखा हो और आपके दिल में अन्दर तक उतर गयी हो उस विषय पर जब आप लिखते हैं तो बात कुछ और ही होती है . ऐसी ही परिस्थिति में मैंने घनघोर वारिश में जब कुछ झोपड़ियों को जलमग्न होते देखा तो उस रात न तो उन झोपड़ियों में रहने वाले लोग सोये और न मै खुद सो पाया और उस रात जो मुझसे कविता वन पड़ी वोह मै आप सबके समक्ष रख रहा हूँ तो आप लिखी हुई और भोगी हुई कविता का फर्क महसूस कीजिये.)
कल महसूस किया मैंने कुछ दरकते हुए.
एक घर, जिसे लोग कहते है अचल संपत्ति
मैंने देखा है उसे कुछ दूर तक सरकते हुए.
छोटे बच्चों को देखा है कंपकंपाते हुए .
रात भर घनघोर वारिश में भीग जाते हुए.
ऐसी वारिश जिसने उन्हें वेकल बना डाला
उनके झोपड़े को एक जल महल बना डाला
एक को पकड़ो तो दूसरा छूट जाता था .
घर का सामान वहां नाव सा उतराता था .
अपने ही हांथो से घर अपना ही उजाड़ना पड़ा.
और थोड़ी ही दूर पर सूखे में तम्बू गाड़ना पड़ा .
कल भी यदि वारिश रही तो यह कहाँ जायेंगे ?.
अपनी तकदीर से लड़ते हुए .
क्या यह अपने घर को मोबाइल बना पाएंगे ?.......
क्या यह अपने घर को मोबाइल बना पाएंगे ?.......
Comment
श्रीमान मुकेश जी, बाढ़ का मंज़र उपस्थित हो गया आँखों के सामने. मेरी पूरी संवेदना है जिस पर रचना लिखी गई है.
सुन्दर भाव एवं प्रस्तुति. बधाई.
आदरणीय मुकेशजी, आपकी संवेदना को सलाम.
khoobsoorat aur hasaas kavita
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