(प्रस्तुत पंक्तियों को उल्लाला छंद में लिखने का प्रयास किया गया है,इसके प्रत्येक चरण में 13-13मात्रायें होती हैं।लघु-गुरू का कोई विशेष नियम नहीं होता,किन्तु 11वीं मात्रा लघु होनी चाहिए)
भूखी आंतों के लिए,
सेंसेक्स बस बवाल है।
तीसमार खां कह रहे,
मार्केट में उछाल है॥
जेब नहीं कौड़ी फुटी,
जनता सब बेहाल है।
भारत विकसित हो रहा,
वाह!बढ़िया कमाल है॥
कर्ज बोझ सिर पे लदा,
कृषक हुआ बदहाल है।
हम विकसित हो जायगें,
यह कोरा भौकाल है॥
आंधी भ्रष्टाचार की,
भारत में पुरजोर है।
महगाई की मार से,
आम मनुज कमजोर है॥
जन रक्षक भक्षक हुये,
त्राहि त्राहि चहुओर है।
किसके दर पर जाय हम,
हर कोई घुसखोर है॥
यह भी अपना देश है,
रहा ज्ञान का खान जो।
इस पर भी अभिमान करें,
हम पा रहे सम्मान जो॥
Comment
विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीजी,
मुझे उल्लाला छ्न्द के बारे में आपसे ही जानकारी प्राप्त हुई है, इसलिए आपसे ही और जानने कि इच्छा हुई
मैंने जिन पंक्तियों को अपने कमेन्ट में कोट किया था उसमें आपने एक पंक्ति में १३ मात्र को कैसे निभाया है यह समझने में मुझे दिक्कत हो रही है,
ग़ज़ल विधा में मात्रा गिनने का तरीका हिन्दी छ्न्द से अलग होता है इसलिए मुझे समझने में दिक्कत हो रही है
क्योकि मेरे गिनने के हिसाब से इन पंक्ति में १४- १४ मात्रा आ रही है
इस २ / पर २ / भी २ / अ १ भि १ मा २ न १ / क १ रें २ , = १४
हम २ / पा २ / र १ हे २ / सम् २ मा २ न १ / जो २ = १४
मैं भी उल्लाला छ्न्द के लिए कुछ खोजबीन करता हूँ कुछ जानकारी प्राप्त हुई तो आपसे साझा करूँगा
सादर
aadarniya tripathi ji, saadar, kavita ke bhav ati sundar , aaj ki sthiti ko darshte hue. taknik batai, abhar , badhai.
भूखी आंतों के लिए,
सेंसेक्स बस बवाल है।
तीसमार खां कह रहे,
मार्केट में उछाल है॥...sahi bat kahiविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी
हर बंद बेहद सुरुचिपूर्ण बन पड़ा है अच्छी प्रभाव परक प्रवाहमय रचना -
कर्ज बोझ सिर पे लदा,
कृषक हुआ बदहाल है।
हम विकसित हो जायगें,
यह कोरा भौकाल है॥\
hardik बधाई !!
Vindhyeshwari prasad tripathi जी अति उत्तम प्रयाश और सार्थक प्रयाश के लिए हार्दिक आभार ,,
बेहतरीन ....... बधाई हो
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