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कविता -

कवि कहते हैं,

होना चाहिए प्रेम प्रतिज्ञा अपने महबूब के प्रति.

वर्णन हो, उसके अंग-प्रत्यंग का

नख से शिख तक.

कलात्मकता निहित हो,

उसके सुखमय आलिंगन में !

परन्तु,

कविता एक परम्परा भी है,

मेहनतकशों के प्रति प्रतिबद्धता का भी है.

जहां यह सब नहीं होता.

कविता कल्पना में नहीं

थाने के लाॅकअप में भी हो सकता है,

जहां थानेदार की बूट लिखती है कविता, हमारे कपाड़ पर.

जहां गर्दन तोड़कर लुढ़का दी जाती है

और बन जाती है कविता.

यह शासक वर्ग -

रोज लिखती है कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के मूंह में

रायफल की नाल ठंूस कर.

आईयेे -

मैं भी सुनाता हूँ एक कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के हिंसक प्रतिरोध का.

मैं कवि नहीं, भुक्तभोगी हूँ.

नहीं ! मैं तो निमित्त मात्र हूँ,

भूख से बिलबिलाते लोगों का

एक प्रतिनिधि मात्र हूँ...

कवि चिल्लाते हैं -

यह कविता नहीं है...

पर, चीखने दो उसे,

नहीं चाहिए मुझे उसका नपुंसक समर्थन.

मैं तो भुक्तभोगी हूँ,

मैं अपनी आवाज हूँ,

इसे तुम कोई भी नाम दो,

मैं ही भविष्य हूँ -

तुम्हारे आने वाली कल की कविता का.

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Comment

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Comment by Rohit Sharma on April 20, 2012 at 11:46am

रचना पसंद करने के लिए आप सबों को धन्यवाद

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2012 at 11:21pm

मैं अपनी आवाज हूँ,

इसे तुम कोई भी नाम दो,

मैं ही भविष्य हूँ -

तुम्हारे आने वाली कल की कविता का.

bahut sundar, badhai.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 17, 2012 at 11:46pm

कविता कल्पना में नहीं

थाने के लाॅकअप में भी हो सकता है,

जहां थानेदार की बूट लिखती है कविता, हमारे कपाड़ पर.

जहां गर्दन तोड़कर लुढ़का दी जाती है

और बन जाती है कविता.

यह शासक वर्ग -

रोज लिखती है कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के मूंह में

रोहित जी बहुत खूब .सटीक ..कविता तो कहीं भी जन्म ले लेती हैं सुख में गम में दर्द में भीड़ में मेले में झमेले में ... ...खूबसूरत ...जय श्री राधे 

मुख्य पृष्ठ पर आप के अक्षर बड़े हलके लग रहे थे श्वेत ...

भ्रमर ५ 
Comment by Abhinav Arun on April 17, 2012 at 1:13pm

मैं भी सुनाता हूँ एक कविता,

भूख से बिलबिलाते लोगों के हिंसक प्रतिरोध का.

मैं कवि नहीं, भुक्तभोगी हूँ.

नहीं ! मैं तो निमित्त मात्र हूँ,

भूख से बिलबिलाते लोगों का

एक प्रतिनिधि मात्र हूँ...

bahut sundar pravaah maan kavita rohit ji hardik badhai aapko !!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 17, 2012 at 12:21pm

क्या ख़ूब भाव प्रस्तुत किये आपने श्री रोहित जी! बधाई आपको!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 8:16pm

कवि कह कुछ रहा है किन्तु कहना कुछ चाहता है, इस अभिव्यक्ति पर क्या कहू  , बहुत खूब !

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