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Rohit Sharma's Blog (9)

मुठभेड़

ताजगी का आलम

बसंत की बौछार

कोयल की कुहूक

मंजरों की मादक खूशबू

चांदनी बहती रात

मनोहर एकांत वह क्षण.

परन्तु,

बेचैन-दुःखी-निराश

वह नौजवान.

इन्तजार करता किसी के आने का

शायद किसी बहार का

प्रेम का मारा

बिचारा.

टिक....टिक...

समय बीतती रही,

पर लगे पंक्षी की तरह

जैसे कोयल की कुहूक

पत्तों की सरसराहटें...

चेहरे पर जमाने भर की खुशियाँ समेटे

मुड़ा ही था वह नौजवान कि

तीन गोलियाँ एक-एक कर

सीधा दिल…

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Added by Rohit Sharma on April 20, 2012 at 6:00pm — 4 Comments

धूल

सदियों से शोषित-दमित समाज में -

तुम्हारे पास स्पष्ट समझ है

एकदम साफ रास्ता है -

लूट के घिनौने यंत्र को बरकरार रखने में !

लूट के लिए खून बहा देने में !

लूट के खिलाफ उठी हर आवाज को कुचल डालने में !

हैरत तो यह है कि,

कितनी आसानी से सफल हो जाते हो तुम,

अपने नापाक इरादों में !

सच ! तुमको कितना मजा आता है -

अस्मत लुटी औरतों की दर्दनांक मौत में !

लोगों को आपस में ही लड़ा डालने में !

उनके बीच में ही संदेह का बीज पनपा…

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Added by Rohit Sharma on April 19, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

कविता

कविता -

कवि कहते हैं,

होना चाहिए प्रेम प्रतिज्ञा अपने महबूब के प्रति.

वर्णन हो, उसके अंग-प्रत्यंग का

नख से शिख तक.

कलात्मकता निहित हो,

उसके सुखमय आलिंगन में !

परन्तु,

कविता एक परम्परा भी है,

मेहनतकशों के प्रति प्रतिबद्धता का भी है.

जहां यह सब नहीं होता.

कविता कल्पना में नहीं

थाने के लाॅकअप में भी हो सकता है,

जहां थानेदार की बूट लिखती है कविता, हमारे कपाड़ पर.

जहां गर्दन तोड़कर लुढ़का दी जाती…

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Added by Rohit Sharma on April 16, 2012 at 8:03pm — 6 Comments

मां

मां !

मैंने खाये हैं तुम्हारे तमाचे अपने गालों पर

जो तुम लगाया करती थी अक्सर

खाना खाने के लिए.

मां !

मैंने भोगे हैं अपने पीठ पर

पिताजी के कोड़ों का निशान,

जो वे लगाया करते थे बैलों के समान.

मां !

मैंने खाई हैं हथेलियों पर

अपने स्कूल मास्टर की छडि़यां

जो होम वर्क पूरा नहीं करने पर लगाया करते थे.

पर मां !

मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ

आखिर कयों लगी है मेरे हाथों में हथकडि़यां ?

जानती हो…

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Added by Rohit Sharma on April 16, 2012 at 1:36pm — 15 Comments

एक पीड़ा

भारत सरकार की नई आर्थिक नीति के तहत् विगत वर्षों में जिस नीति को जारी किया गया था, उसका परिणाम कुछ ऐसा ही दिखना था. भारत सरकार ने उन क्षेत्रों में विशेष तौर पर भारी मात्रा में पैसों को झोंक दिया है, जिस क्षेत्र में नक्सलवादियों ने अपना फन फैलाया है, परन्तु उन क्षेत्रों में आने वाले पैसों को कम कर दिया है, या नहीं के बराबर दिया है अथवा घोटालों की भेंट चढ़ गया है, जिन क्षेत्रों में या तो नक्सलवादी नहीं हैं अथवा किसी किस्म का आन्दोलन नहीं हो रहा है अथवा जागरूकता की कमी है. बस्तर के जंगलों में…

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Added by Rohit Sharma on October 7, 2011 at 1:30pm — No Comments

चोरों का देश

यह देश चोर और लूटेरों का है. यहां चोर और लुटेरों की संस्कृति विद्यमान है. वजह भी साफ है हजारों सालों से हम लुटते आ रहे हैं. लुटेरे थक गये पर हम नहीं थके. सोने की चिडि़यां दुनिया भर के दानवों का शिकार बनती रही है और आज भी बनी हुई है. फर्क सिर्फ इतना आया है कि आज हमें आजादी जैसी लाॅलीपाॅप थमा कर हमें लूटा जा रहा है. छोटा सा एक उदाहरण है: रोजगार सेवक जैसी नौकरी करने वाले स्वीकार करते हैं कि महिने में कम से कम 1 लाख से डेढ़ लाख की कमाई होती है. मुखिया जैसे बिना वेतन के कार्य करनेवाले थौक के भाव…

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Added by Rohit Sharma on August 18, 2011 at 12:14pm — No Comments

अन्ना हजारे

अन्ना हजारे आज जिस लोकपाल बिल हेतु संघर्ष कर रहे हैं, यह भविष्य में कितना सार्थक होगा यह कहना भविष्य की बात है. परन्तु उनका संघर्ष इस बात को पूरजोर तरीके से एकबार फिर साबित कर दिया है कि इस देश में अपने अधिकार और अपनी बातों को रखने की कहीं से भी आजादी नहीं है. यहाँ अभिव्यक्ति की कोई भी स्वतंत्रता नहीं है. उनको तो बिल्कुल ही नहीं जो देश के शासक वर्ग के खिलाफ आवाज उठाते हैं. भ्रष्टाचार जैसे सर्वव्यापी घृणित रोग के खिलाफ लड़ने वाले जब इस ‘‘आजाद’’ देश में अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं और उन्हें…

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Added by Rohit Sharma on August 17, 2011 at 3:49pm — No Comments

दहेज प्रथा: बीच बहस में

दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई ता£कक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:

1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से…

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Added by Rohit Sharma on August 2, 2011 at 7:14pm — 1 Comment

खामोश

यहां क्रांति की तैयारी चल रही है-

कोनों में दुबक कर

वे जोर से गरजते हैं

नारे की गरजना से

थरथराने लगता है सामने वाला

वे अपने मूंह में तोप फिट कर लिये हैं,

गरजने के लिए.

चुप रहो !

वे क्रांति की तैयारी कर रहे हैं.

देखते नहीं, वे अपना रायफल बंधक रख दिये हैं

पत्नी के गहने जो खरीदने हैं.

अरे, वो देखो वे कहीं जा रहे हैं.

चुप, इतना भी नहीं समझता,

मंत्री जी की अगुवानी मंे हैं.

अपने बेटे को विदेश जो भेजना है.

कल तक गरीब थे

-तो रहा… Continue

Added by Rohit Sharma on July 19, 2011 at 3:41pm — 1 Comment

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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