हम तो बादल हैं ...........
बरसे कभी नहीं बरसे.....
सफ़र किया था शुरू बेपनाह दरिया से,
झूमे खेले लहर की गोदी में,
जिन के सीने में मोती और तन पे चाँदी थी,
तभी पड़ी जो वहां तेज़ किरन सूरज की,
हम थे एक बूंद,हमारी थी भला क्या औकात,
निकल पड़े हम समंदर से पल में भाप हुए,
तमाम रास्तों से चल के बस भटकते हुए,
लोगों को कहते और खुद को सिर्फ सुनते हुए,
किसी आंगन औ किसी सड़क को भिगोते हुए,
कभी पेड़ों औ कभी बस्तियों के जंगल में,
तलाश करते रहे वो ज़मीं जहाँ था कभी,
एक दरिया जो मेरा घर हुआ करता था,
मगर कहीं न दिखे वो ज़मीन और गगन,
किरन जो मुझ को उठा कर यहाँ तलक लायी,
उसी की आँच ने दरिया को भी सुखा डाला,
अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....
Comment
बहुत ख़ूब सरिता जी! बादल का यही मनमौजी रवैया मुझे बहुत पसंद है| हार्दिक बधाई आपको|
vaah boond jo ban gai moti ,boond jo banke bhaap ja mili baadlon ke jhund se ....baut pyaari rachna.
Good morning maim
kamal ka likhti h aap..............!
अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....
अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....
ish putri , saadar
aapki har rachna mujhe ek theme deti hai nayi rachna karne hetu.
कभी पेड़ों औ कभी बस्तियों के जंगल में,
तलाश करते रहे वो ज़मीं जहाँ था कभी,
एक दरिया जो मेरा घर हुआ करता था,
itna kafi hai. badhai.
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