कौन हूँ मैं...
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आज फिर से वो ही ख्याल आया हैं,
आत्मा से उभर के एक सवाल आया हैं,
कि मैं कौन हूँ...??
कौन हूँ मैं... ?
हैं रंगमंच जो दुनिया ये,
क्यूँ अपने किरदार को भूल रहा,
जीना था औरो की खातिर,
क्यूँ अपने दुखों में झूल रहा,
क्यूँ मुझमें हैं अनबुझी प्यास,
क्यूँ खुशियों को मैं ढूँढ रहा,
अनभिज्ञ हूँ मौन हूँ...
आखिर मैं कौन हूँ...??
मन के अन्दर कोई प्यास नहीं,
अंतस फिर भी अतृप्त क्यों,
सपनों में ये संलिप्त है क्या,
भीगी पलकें ये पीर है क्यों,
क्या ये सब भी इक ढोंग बस,
क्या खोटा है मेरा मानस,
हैरान हूँ मौन हूँ..
आखिर मैं कौन हूँ...??
कौन हूँ मैं... ??
बस चाहूँ जीव हित बहूँ नदिया सा,
खिल जाऊँ ,महकूँ बगिया सा,
पर क्या चाह ही अनमोल है,
प्रयाण बिना पथ का क्या मोल है..
रीत रही प्रतिपल जीवन गगरी,
बढ़ रही निरंतर प्रश्न वल्लरी,
अनुत्तरित हूँ मौन हूँ..
आखिर मैं कौन हूँ...?
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—प्रवीण कुमार ‘पर्व’
Comment
Ambarish Srivastava जी और vandana gupta जी सराहना हेतु अत्यंत कृतज्ञ हूँ..
//बस चाहूँ जीव हित बहूँ नदिया सा,
खिल जाऊँ ,महकूँ बगिया सा,
पर क्या चाह ही अनमोल है,
प्रयाण बिना पथ का क्या मोल है..
रीत रही प्रतिपल जीवन गगरी,
बढ़ रही निरंतर प्रश्न वल्लरी,
अनुत्तरित हूँ मौन हूँ..
आखिर मैं कौन हूँ...?//
प्रवीण जी, बड़ी ही ईमानदारी व सहजता से स्वयं से किये गए प्रश्न बहुत ही सटीक हैं ! आदरणीय बागी जी ने सत्य ही कहा है कि स्वयम को खोज पाना ही जीवन की सार्थकता है ! भाव व शिल्प की दृष्टि से यह रचना बहुत सशक्त है ! हार्दिक बधाई मित्रवर !
CHOTU SINGH जी, MAHIMA SHREE जी, Ganesh Jee "Bagi" जी, Arun Kumar Pandey 'Abhinav' जी,satish mapatpuri जी, आशीष यादव जी, Seema दीदी, SHAILENDRA KUMAR SINGH 'MRIDU' जी, PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी...
मेरी प्रथम रचना को आप लोगो ने जो मान दिया हैं..इससे मैं अभिभूत हूँ !! और इस सम्मान के लिये अत्यंत कृतज्ञ हूँ..!! मैं अभी लेखन विधा में बहुत छोटा हूँ आप सब से अत: सविनय निवेदन हैं कि आदरणीय जैसे शब्दों से संबोधित न करें...
आदरणीय प्रवीण जी, स्वयम को खोज पाना ही जीवन की सार्थकता है, मैं कौन हूँ ....इसी प्रश्न में हम सभी उलझे है, शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें महोदय |
आत्म मंथन कराती इस खुबसूरत रचना के लिए बधाई प्रवीण जी
"अपने आप को जानो" का सन्देश संप्रेषित करती कृति पर ह्रदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय प्रवीण जी
बस चाहूँ जीव हित बहूँ नदिया सा,
खिल जाऊँ ,महकूँ बगिया सा,
adarniya pravin ji, sadar. bahut sundar vichar, sundar rachna, prshn. badhai.
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