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लघु कथा :- गिद्ध

"चल कल्लुआ जल्दी से दारु पिला, आज बहुत टेंसन में हूँ |"
"अरे, टेंसन और आप? आखिर ऐसी क्या बात हो गई बिल्लू दादा ? 
"यार, कल शाम जिस बूढ़े को हमने लूटा था न, उसने थाने में रपट दर्ज करा दी है |"
"तो दादा इसमें कौन सी टेंसन की बात है ?"
"टेंसन ये है कि हम ने तो कुल २१२ रुपये और एक पुरानी सी घड़ी ही लूटी थी, लेकिन उस बुढऊ ने दस हजार नगद, एक घड़ी और सोने की अंगूठी की रपट लिखवा दी है |"
"रपट लिखवा दी तो कौन सा आसमान टूट पड़ा ?" 
"आसमान ये टूट पड़ा है कल्लुआ कि अब ऊ ससुरा दरोगा, लूट में से आधा हिस्सा मांग रहा है |"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 6:43pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, लेखक जो देखता है वही तो लिखता है, उत्साहवर्धन और सराहना हेतु आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 6:41pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार छोटू सिंह जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 6:39pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 25, 2012 at 5:18pm

श्री गणेशजी बागी, लघु कथा "गिद्ध" के मध्यम से आपने एक संकेत दिया है | गिद्ध तो देश के हर शहर के हर थाने में, हर विधान-सभाओ में, विधान परिषदों, नगर निगमों, सार्वजानिक क्षेत्र के हर कार्यालयों, निगमों, बोर्डो में "गिद्ध द्रष्टि" गडाए बैठे है, तभी तो बिचारे असली गिद्धों की संख्य कम होती जा रही है- "अब दादुर वक्ता भये हम ही पुंछत कौन"|
लघु कथा के माध्यम से सच्चाई इंगित करने के लिए बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 25, 2012 at 4:00pm

बागी जी बहुत यथार्त चित्रण कर रही है आपकी लघु कथा सच में यही तो हो रहा है आज कल तभी तो पुलिस वाले और चोर मौसेरे भाई कहे जाते हैं बहुत बढ़िया कहानी 

Comment by MAHIMA SHREE on April 25, 2012 at 3:10pm
आदरणीय बागी जी ,नमस्कार
अनुकरणीय लघु कथा लेखन ...
सच छोटी सी घटना को आपने कितने मनोरंजक तरीके से कहते हुए .दरोगा और बिल्लू में कौन सबसे बड़ा चोर है ये भी स्पष्ट कर दिया ..
बधाई स्वीकार करें

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 1:43pm

बहुत बहुत आभार शन्नो दी,


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 1:42pm

शुक्रिया दिनेश रविकर जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 1:41pm

धन्यवाद भाई संदीप जी |

Comment by Shanno Aggarwal on April 25, 2012 at 1:24pm

गणेश, बहुत बधाई. कहानी छोटी है पर सुंदर व बड़ी शिक्षाप्रद. अब चोर भी चोरी करते समय  दस बार सोचेंगे कि बाद में पकड़े जाने पर उन्हें इस तरह फंसना पड़ सकता है जैसे इस कहानी में बिल्लू और कलुआ की जान आफत में पड़ गयी. मुझे सोचकर हँसी आ रही है...:) 

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