अरुणिम सूरज जिस दिन मुझसे शर्त लगा झुक जाएगा,
जिस दिन सपनों के कानों में कोई सर्द आह भर जाएगा,
उस दिन भारत को भेंट करेंगे कफन एक सो जाने को,
जिस दिन बहता शोणित अपना क्षार क्षार हो जाएगा।।
तब तक चुप कैसे हम हों जब तक छाती में गर्मी है,
जब तक स्वप्न बाँध पैरों में भावों में सरगर्मी है,
तब तक बेकल इंतजार करता है रक्त उड़ानों का,
जब तक खद्दर और खाकी का केवल मतलब बेशर्मी है।।
कलम अधूरे अक्षर लिख कर कहाँ चैन से सोती है,
किस घर की मर्यादा लुटकर जिंदा रहने को रोती है,
किसने सपने देखे भूखे ही मर जाने के, अब तक
वो जिंदा है जिसने लूटा भारत को मान बपौती है।।
हम सोने वाले सिंहों को सिंहों में नहीं गिना करते,
हर सहने वाले मानव को युधिष्ठिर नहीं कहा करते,
हर पल मर मर कर जीने का कैसे नाम जिंदगी है,
जो रुक जाए अवरोधों से उसको धारा नहीं कहा करते।।
वो नहीं जानते जब भारत का शौर्य करवटें बदलेगा,
केवल इसका इतिहास नहीं भूगोल कहानी बाँचेगा,
तब रातों के अँधियारे जुगनूँ से धुंधले पड़ जाएंगे,
बच्चे सूरज की किरणों पर चढ़ रश्मिरथी बन जाएंगे।।
Comment
प्रयासरत रहें नीरजभाईजी. आपकी कविता पर दीखता ’प्रभाव’ निरंतर और दीर्घकालिक प्रयास से न केवल दूर होगा आपकी रचना को जो उठान मिलती दीख रही है, सुलभ भी हो जायेगा.
प्रस्तुत रचना की कुछ पंक्तियाँ वास्तव में प्रभावशाली बन पड़ी हैं. आपको इस प्रयास के लिये हृदय से बधाइयाँ देता हूँ.
हर सहने वाले मानव को युधिष्ठिर नहीं कहा करते.......
वाह वाह, बहुत ही सुन्दर रचना नीरज जी, बढ़िया ख्यालात है , बधाई स्वीकार कीजिये |
हम सोने वाले सिंहों को सिंहों में नहीं गिना करते,
हर सहने वाले मानव को युधिष्ठिर नहीं कहा करते,
हर पल मर मर कर जीने का कैसे नाम जिंदगी है,
जो रुक जाए अवरोधों से उसको धारा नहीं कहा करते।।
नीरज जी बहुत ही अच्छी रचना बधाई स्वीकार करें
कलम अधूरे अक्षर लिख कर कहाँ चैन से सोती है,
किस घर की मर्यादा लुटकर जिंदा रहने को रोती है,
किसने सपने देखे भूखे ही मर जाने के, अब तक
वो जिंदा है जिसने लूटा भारत को मान बपौती है।।
बहुत ही सुन्दर कृति हार्दिक बधाई स्वीकार करें नीरज द्विवेदी जी
हम सोने वाले सिंहों को सिंहों में नहीं गिना करते,
हर सहने वाले मानव को युधिष्ठिर नहीं कहा करते,
हर पल मर मर कर जीने का कैसे नाम जिंदगी है,
जो रुक जाए अवरोधों से उसको धारा नहीं कहा करते।।
aadarniy niraj ji, saadar.
josh jagati rachna, badhai. utkrsht.
बहुत सशक्त रचना हार्दिक बधाई -
कलम अधूरे अक्षर लिख कर कहाँ चैन से सोती है,
किस घर की मर्यादा लुटकर जिंदा रहने को रोती है,
किसने सपने देखे भूखे ही मर जाने के, अब तक
वो जिंदा है जिसने लूटा भारत को मान बपौती है।।
नीरज जी रचना बोल रही hai आपकी कलम को नमन hai !
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