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ये दूत है जो खुद आया है , उस परमशक्ति का साया है ,
उसने गुप्त सन्देश पड़ा , जो रूह ने है चुप चाप सुना ,
सत्य राह समझाने दो, अब दूत को तो घर जाने दो ,
जो ज्ञान मिला उसको रखना, हर बूँद मे बस अमृत चखना
उस अमृत मे लय हो कर के , तुम एक नयी दुनिया रचना ,
बहुत अच्छे भाव प्राची पढने में कुछ लेट हो गई |इस सुन्दर रचना के लिए बधाई
ह्रदय से आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, हार्दिक आभार.
व्यष्टि को ब्रह्मेष्टि के सापेक्ष सोच पाना और उसका अर्थ निरुपित समझना इस रचना का मूल है. रचना इन अर्थों में सफल हुई है. इस हेतु हार्दिक बधाई. वैसे अतुकांत (स्वतंत्र) रचनाओं को कहने का अपना एक अलग व्यंजन है. आपकी संलग्नता इसके लिये समयानुसार आवश्यक तथ्य स्वयं उपलब्ध करायेगी.
सादर
ये दूत है जो खुद आया है , उस परमशक्ति का साया है ,
उसने गुप्त सन्देश पड़ा , जो रूह ने है चुप चाप सुना ,
सत्य राह समझाने दो, अब दूत को तो घर जाने दो ,
जो ज्ञान मिला उसको रखना, हर बूँद मे बस अमृत चखना
उस अमृत मे लय हो कर के , तुम एक नयी दुनिया रचना ,
sahmat. badhai.
ह्रदय से आभार आदरणीय satish mapatpuri जी
कोई ख़ास जब आता है , क्यूँ वो ही मन को भाता है
दिल बोला पिछले जन्मों का शायद कोई नाता है ...khoob.
जब ब्रह्माण्ड के हर कण से एक रिश्ता सा बन जाएगा ,
रे भोले भाले से मन तू खुद अनंत हो जाएगा !....jeewan ka saar....nice Dr Prachi.
दिल बोला ,
अब भ्रम मत पालो , सच से अब तुम आँख मिला लो …
सच है जब वो आता है , रूह तलक छू जाता है
पर वो आया तुम्हे बताने , इश्वर कैसा होता है ?
गर भागे जो उसको पाने , ये ही बस एक धोखा है ,
बहुत खूब डॉ . प्राची जी ....... अभिनव .... बधाई स्वीकार करें
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