For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुफलिसी में दिन बिताने वाले 

पी के आंसू, घुड़कियाँ खाने वाले,

खोल आँखे, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
न किसी धर्म से है तू
न तेरी कोई भाषा,
तुझसे छलकती है
निशि-दिन निराशा|
नित नयी घोषणाओं ने 
किया तुझको पंगु,
बन के रह गया तू
बस एक पिछलग्गू|
बीपीएल के कटोरे में रोटी खाने वाले
आधे पेट खा के कुपोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
महज वोट बैंक हैं कतारें तेरी
योजनाओं से छला जाता है तू,
आते हैं चुनाव, जीतते हैं नेता
पराजय की गर्त में चला जाता है तू|
होंगे एक-दो तेरी बिरादरी से
लाल बत्ती में चलते होंगे,
तेरी भलाई की सच्ची कोशिश से
देखता होगा वही जलते होंगे|
दो दिन काम करके, दस दिन बैठने वाले
कागज पर 'रोजगार मिला' घोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
जुल्म होते हैं तुझपर
आन्दोलन खड़ा होता है,
निकला नया चेहरा
पिछले से बड़ा होता है|
हालात वही रहते हैं
ढंग बदल जाते हैं,
टोपी और झंडों के 
रंग बदल जाते हैं|
जाति की जमीन से उगनेवाली
घटिया मानसिकता से पोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 5:16pm

अरुण जी आपका स्वागत मेरे ब्लॉग पर. आपको रचना पसंद आई...आपका आभारी हूँ.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 5:14pm

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद योगराज सर.

Comment by Abhinav Arun on May 6, 2012 at 2:00pm

एक सन्देश परक सार्थक  और सशक्त रचना श्री अजीतेंदु जी हार्दिक बधाई !!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 11:16am

सुंदर अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें कुमार गौरव जी

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 5, 2012 at 8:16am

सौरभ पाण्डेय जी

सादर प्रणाम
स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2012 at 11:22pm

कुमार गौरवजी, आपकी कोई पहली रचना देख रहा हूँ. प्रस्तुत रचना ’शोषित है तू..’ अपनी साफ़गोई और अपने तेवर के कारण जैसे सीधे उतरती चली जाती है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें, विशेषकर इन पंक्तियों के लिये - 

दो दिन काम करके, दस दिन बैठने वाले
कागज पर 'रोजगार मिला' घोषित है तू,

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 4, 2012 at 9:53pm

आदरणीय मुकेश कुमार जी

सादर नमस्कार
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका.
Comment by Mukesh Kumar Saxena on May 4, 2012 at 7:11pm
bhai ji dil ko chhoo lene bali rachna hai. Badhai
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 4, 2012 at 5:14pm

महिमा जी सादर !

आपका स्वागत है, आपको मेरी रचना अच्छी लगी...आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
Comment by MAHIMA SHREE on May 4, 2012 at 4:35pm
हालात वही रहते हैं
ढंग बदल जाते हैं,
टोपी और झंडों के
रंग बदल जाते हैं|
जाति की जमीन से उगनेवाली
घटिया मानसिकता से पोषित है तू,
खोल आँखें, पहचान खुद को
कुछ और नहीं, सिर्फ शोषित है तू|
गौरव जी नमस्कार ,
छा गए आप :) बहुत बढ़िया .. अपने मजदूरो की दशा का इतना सटीक चित्रण प्रबाह के साथ किया की शब्द नहीं है मेरे पास बयाँ करने के लिए
बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service