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(प्रस्तुत रचना रोला छन्द में आबद्ध है।रोला के प्रत्येक चरण में11-13 पर यति(विराम) के साथ 24-24 मात्रायें होती हैं।चरणान्त में लघु गुरु की विशेष बाध्यता नहीं है।)

रहिमन आये याद,हमें तुम्हारा पानी।
घटा जलस्तर किन्तु,बढ़ा आंखों में पानी॥

मोती चूना और,मनुज सभी गये सूखे।
प्यासी सारी भूमि ,त्राहि-त्राहि जन चीखे॥

पिघल रहा हिमवान,जलधि तल ऊपर आया।
क्षरण परत ओजोन,काल की काली छाया॥

ऑक्सीजन में कमी,वायु में कार्बन भारी।
मलवे से है पटी,प्रदूषित नदियां सारी॥

खरबों रुपया खर्च,नदी को सफवाने में।
सारा रुपया साफ,नदी बस दिखलाने में॥

यूं ही जल का नाश,जगत में यदि है जारी।
महायुद्ध की बात? न! महाप्रलय तैयारी॥

धरा बचा लें नीर,बचाना जीवन चाहें।
यही भले की बात,यदि हम प्रलय न चाहें॥

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Comment

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 5, 2012 at 7:33pm
आदरणीय दुष्यंत सर जी आपने रचना को सराहा आपका कोटिश: आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 5, 2012 at 7:31pm
आदरणीय प्रभाकर सर जी आपने मेरे छुद्र प्रयास पर अपना अमूल्य समय दिया रचना को सराहा आपका कोटिश: आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 5, 2012 at 7:20pm

विंध्येश्वरी भाईजी,  आप छंदों पर आप काम कर रहे हैं, यह सुखकारी है.  देखियेगा धीरे-धीरे रचनाओं में तथ्यात्मक गहरायी आती जायेगी.

हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on May 5, 2012 at 7:09pm
आदरणीय बागड़े सर जी मेरे छुद्र प्रयास की सराहना हेतु आपका कोटिश: आभार।
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 1:01pm

धरा बचा लें नीर,बचाना जीवन चाहें।
यही भले की बात,यदि हम प्रलय न चाहें॥

बहुत सुन्दर ,वर्तमान और भविष्य हेतु सन्देश  बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on May 5, 2012 at 12:12pm
रहिमन आये याद,हमें तुम्हारा पानी।
घटा जलस्तर किन्तु,बढ़ा आंखों में पानी॥

खरबों रुपया खर्च,नदी को सफवाने में।
सारा रुपया साफ,नदी बस दिखलाने में॥..
वाह !! विन्धेश्वरी भाई क्या कहने है आपके छंद के ...
बहुत-2 बधाई आपको
Comment by दुष्यंत सेवक on May 5, 2012 at 12:05pm

सीख से भरी सुन्दर भावों से सजी रोला छंद में आबद्ध सुन्दर रचना.. हार्दिक बधाई विन्ध्येश्वरी जी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 11:13am

वह वाह - बहुत सुन्दर रोला छंद. बधाई स्वीकार करें विन्ध्येश्वरी भाई

.

Comment by AVINASH S BAGDE on May 5, 2012 at 10:22am

ऑक्सीजन में कमी,वायु में कार्बन भारी।
मलवे से है पटी,प्रदूषित नदियां सारी॥


धरा बचा लें नीर,बचाना जीवन चाहें।
यही भले की बात,यदि हम प्रलय न चाहें॥

sateek

sarthak

samyochit.

Comment by AVINASH S BAGDE on May 5, 2012 at 10:21am

रहिमन आये याद,हमें तुम्हारा पानी।

घटा जलस्तर किन्तु,बढ़ा आंखों में पानी॥...wah bindeshwari ji

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