हर दिन बन कर मलयज बयार
सब पर होती रहती निसार
माँ से मिलतीं खुशियाँ हजार l
वो बन कर ममता की बदरी
भरती रहती जीवन-गगरी
छाया बन कर धूप-शीत में
बन जाती संबल की छतरी
हर बुरी नजर देती उतार l
वो है बाती की स्वर्ण-कनी
हर दुख को सह लेती जननी
पलकों पर सदा बिठाती है
बच्चे होते कच्ची माटी से
ढाले वो उनको ज्यों कुम्हार l
वो हृदय में रहे चाशनी सम
स्नेह कभी ना होता कम
सबकी खुशियों में रम कर
छिपा के रखती अपने गम
उसमें क्षमता भू सी अपार l
वो है तो है घर में बसंत
आँचल उसका निर्मल अनंत
स्पर्श है उसका मरहम सा
वह ही है जग का आदि अंत
अक्षत-रोली और पुष्प-हार l
वो घर के नभ में चंदा-तारा
उस जैसा ना कोई न्यारा
झिड़की देकर गले लगाती
बन कर कश्ती और पतवार
हर आफत करती दरकिनार l
हर दिन बन कर मलयज बयार
सब पर होती रहती निसार
माँ से मिलतीं खुशियाँ हजार l
-शन्नो अग्रवाल
Comment
बहुत-बहुत शुक्रिया...गणेश जी.
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झिड़की देकर गले लगाती
बन कर कश्ती और पतवार ///
वाह शन्नो दी , बहुत ही सही बात कही हैं, माँ ऐसी ही होती है |
अशोक जी, रचना आपको पसंद आई इसके लिये आपका हार्दिक धन्यबाद.
शन्नो जी सादर नमस्कार,
वो है बाती की स्वर्ण-कनी
हर दुख को सह लेती जननी
पलकों पर सदा बिठाती है
बच्चे होते कच्ची माटी से
ढाले वो उनको ज्यों कुम्हार l
आपकी माँ के प्रति सुन्दर अभिव्यक्ति से मन में माता के प्रति आदर में और वृद्धि होती है. बधाई.
अजय जी, अरुण जी, हसरत जी एवं राजेश कुमारी जी, रचना की सराहना हेतु आप सभी का साभार धन्यबाद.
और हसरत जी, शेर के लिये शुक्रिया...बहुत खूबसूरत है...
शन्नो जी माँ सच में ऐसी ही होती हैं कभी भुलाई नहीं जाती मात्र महिमा से सराबोर कविता की हार्दिक बधाइयां
bahut khoob ahanno ji
apki rachna ko padhkar ek sher yaad aa gaya
jiske bhi dil se maa ki mohabbat chali gayi
samjho ke uske haath se jannat chali gayi
वो है तो है घर में बसंत
आँचल उसका निर्मल अनंत
स्पर्श है उसका मरहम सा
वह ही है जग का आदि अंत
अक्षत-रोली और पुष्प-हार
ऐसी हर माँ और उसकी ममता को नमन है आपको is रचना के लिए हार्दिक बधाई !!
Waah Shanno ji, bahut hi sundar....
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