For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई

जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई

यार दीवानगी से थोड़ी शरारत आ गई


ये नया दौर  है  इसमें जो लगा उनसे जिगर

चोट दिल पे लगी तो हमको मुहब्बत आ गई


बदलता रोज है आलम मगर जो बदला नहीं

साथ चलता रहा उसको तो अदावत आ गई


चार चांटे लगे वो फिर भी खडा झुकता गया

लोग कहने लगे की इसको शराफत आ गई


दर बदर ठोकरें ही खाता रहा जिसके  लिये

आज उनकी निगाहों में ही हकारत आ गई


खेलना खूब सीखा उनसे मगर आया नहीं 

तोड़ के दिल खुदी का इसमें महारत आ गई


नाम से बैठते गददी में मुफ्त की शोहरत  

बाप के नाम से बच्चों को वजारत आ गई


दीप बाज़ार में दिल औ जिस्म बिकने जो लगा

इश्क बिकने लगा उसमे भी तिजारत आ गई


====संदीप कुमार पटेल "दीप"====


Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 23, 2012 at 10:07pm

नाम से बैठते गददी में मुफ्त की शोहरत  

बाप के नाम से बच्चों को वजारत आ गई

वाह वाह, बहुत खूब, अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति, दाद कुबूल करें संदीप जी |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:32am

आदरणीय नीलांश जी

आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
आपका ये स्नेह बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:31am

आदरणीया महिमा श्री जी

आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रफुल्लित हो गया और अच्छा लिखने के लिए उत्साह बढ़ गया
आपका तहे दिल से शुक्रिया आपका सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:29am

आदरणीय बाजपेई सर , सादर वन्दे

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपका सादर आभार
अपना ये स्नेह और मार्गदर्शन बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:26am

अभिनव सर जी , सादर वन्दे
आपका बहुत बहुत आभारी हूँ सर जी जो आपने मेरी इस रचना को समय दिया और प्रतिक्रिया देकर उत्साह बढाया
ह्रदय की गहराई से आपका शुक्रिया ....................

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 9:23am

आदरणीय योगराज प्रभाकर सर जी सादर नमन
आपके आशीर्वाद से लिखना सार्थक हो गया
आपकी इस प्रतिक्रिया से मन प्रफुल्लित हो गया
मैं अपनी ओर से अथक प्रयास करूँगा और संलग्न रहूँगा
अपना प्रेम इसी तरह हम अनुजों पर बनाये रखिये

Comment by Nilansh on May 16, 2012 at 9:06pm

जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई

यार दीवानगी से थोड़ी शरारत आ गई


bahut sunder sandeep ji

Comment by MAHIMA SHREE on May 16, 2012 at 8:51pm

जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई

यार दीवानगी से थोड़ी शरारत आ गई


ये नया दौर  है  इसमें जो लगा उनसे जिगर

चोट दिल पे लगी तो हमको मुहब्बत आ गई......

क्या बात है , बहुत खूब ... बधाई आपको संदीप जी

 

Comment by Shayar Raj Bajpai on May 16, 2012 at 8:16pm

सुंदर एवं भाव पूर्ण कलाम जनाब..... थोडा सा शब्द संयोजन कीजिये..... आपका कहन बहुत उत्तम है....

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 3:52pm

वाह वाह संदीप जी -

दीप बाज़ार में दिल औ जिस्म बिकने जो लगा

इश्क बिकने लगा उसमे भी तिजारत आ गई

 आपके कलाम ने मन मोह लिया हार्दिक बधाई इस शानदार रचना पर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service