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सामने है खड़ी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे

सामने है खड़ी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे।

रास्ता हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे॥

अब तो हर चीज़ जुदाई में बुरी लगने लगी,

फूल भी लगने लगे ख़ार ख़ुदा ख़ैर करे॥

जाने किस बात से हमसे वो रूठे रूठे हैं,

बदले बदले से हैं सरकार ख़ुदा ख़ैर करे॥

हर कोई चाहता महबूब बनाना उनको,

खिंच गईं हैं कई तलवार ख़ुदा ख़ैर करे॥

रात दिन चैन से सोने नहीं देती मुझको,

उनके पाज़ेब की झंकार ख़ुदा ख़ैर करे॥

बात दिल की मेरे होठों पे आ न जाये कहीं,

हो ना जाये कहीं इज़हार ख़ुदा ख़ैर करे॥

बन सँवर के सरे बाज़ार वो निकले “सूरज”,

हो गए हम भी गिरफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे॥

                              डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 11:24am

बहुत सुन्दर सर जी

वाह क्या बात है

रात दिन चैन से सोने नहीं देती मुझको,

उनके पाज़ेब की झंकार ख़ुदा ख़ैर करे॥........क्या बात है

Comment by AVINASH S BAGDE on May 17, 2012 at 11:06am

wah! Bali sahab...

हर कोई चाहता महबूब बनाना उनको,

खिंच गईं हैं कई तलवार ख़ुदा ख़ैर करे॥


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 17, 2012 at 10:47am

बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है डॉ सूर्या बाली सूरज साहिब, मतले से लेकर मकते तक मोती पिरो दिए है, बधाई स्वीकार करें मान्यवर. चौथे शेअर के सानी में "खिंच गईं हैं कई तलवार" पर ज़रा दोबारा नज़र-ए-सानी फरमा लें. 

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