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आदरणीय गणेश बागी जी, कुण्डलिया पर मेरे प्रयास को सरह्कर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार.. कृपया आपके द्वारा इंगित अंतिम भाग (आँखों..) में यथोचित संशोधन कर के मुझे भी उदाहरण द्वारा समझाने का कष्ट करें कि अटकन कैसे दूर की जाए
आभार. सादर
आदरणीय अशोक कुमार जी, आदरणीय अविनाश बागडे जी, कुण्डलिया पर मेरे प्रथम प्रयास को सराहने के लिए हार्दिक आभार
डॉ साहिबा अच्छी रचना , उचित प्रयास किन्तु अंतिम पक्ति अटक रही है , (आँखों वाला पार्ट)
प्राची जी
सादर, बहुत सुन्दर छंद काव्य सार्थक प्रयास. बधाई.
प्रेम डगर अंजान, संग हों जीवन साथी
रौशन हर इक राह, बने जो दीपक बाती sunder kundaliya Dr Prachi ji
हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपके द्वारा इस कुंडली छंद का अनुमोदन मेरे लिए बहुमूल्य है
नैया होती पार, भले हो तूफाँ लाखों
निष्ठा और कर्तव्य, बसे हों जिनकी आँखों....
bahut sundar...
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