रात आती है तेरी यादें सुहानी लेकर।
फिर मोहब्बत की वही बातें पुरानी लेकर॥
ख़्याल जब तेरा सताता है मुझे रातों को,
सिसकियाँ लेता हूँ मैं आँखों में पानी लेकर॥
आज महफिल में दिवानों के यही चर्चा थी,
कौन आया है ये चिलमन में जवानी लेकर॥
आज लिखूंगा तुझे फिर से मोहब्बत में ख़त,
दिल में बहते हुए दर्दों की कहानी लेकर॥
लोग बह जाते हैं जज़्बात में आकार अक्सर,
वो जिधर जाते हैं जलवों की रवानी लेकर॥
हर तरफ उनके दिवाने है खड़े तोहफे लिए,
हम भी आए हैं मोहब्बत की निशानी लेकर॥
हाले दिल अपना सुनाने को तेरी महफिल में,
आज “सूरज” है चला ग़ज़लें जुबानी लेकर॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
Comment
डॉ सूर्य जी, बधाई....इतनी अच्छी ग़ज़ल सुनाने के लिए...
फिर से लिखता हूँ तुझे आज मोहब्बत में ख़त,
भूले बिसरे हुए लम्हों की निशानी लेकर॥...vaah vaah बेहतरीन ग़ज़ल बहुत पसंद आई
हर तरफ उनके दिवाने है खड़े तोहफे लिए,
हम भी आए हैं मोहब्बत की निशानी लेकर॥
wah sooraj bhai har ek sher ghazal ki khoobsoorti bayan kar raha hai
bahut behtreen ghal ke liye dad kubool karein
acchi ghazal surya bhai
भीड़ रिंदों की घेर लेती है उनको हरदम,
वो जिधर जाते हैं अंगूर का पानी लेकर॥
sunder
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