For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें

शहर ये हो गया शमशान कहीं और चलें॥

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें॥


कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ,  

है नहीं कोई भी इंसान कहीं और चलें॥


जागने और जगाने की बात किससे करें,

यहाँ तो सोया है भगवान कहीं और चलें॥


कोई जोरू से कोई ज़र से ज़मीं से कोई,

हैं सभी लोग परेशान कहीं और चलें॥


आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥


दोस्त दुश्मन सभी चेहरे पे लगाए चेहरे,

कर सका मैं नहीं पहचान कहीं और चलें॥


वक़्त के साथ बदलते हुए चेहरे “सूरज”

देख के मैं भी हूँ हैरान कहीं और चलें॥

                  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on June 4, 2012 at 2:55pm

आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥

 

दोस्त दुश्मन सभी चेहरे पे लगाए चेहरे,

कर सका मैं नहीं पहचान कहीं और चलें

आदरणीय श्री डॉ. बाली , बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ! हर बार की तरह बेमिसाल

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 1:36pm

बेहतरीन गजल

वाह.... वाह..... के लायक

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 9:13pm

आदरणीय बाली जी
             सादर नमस्कार, बहुत सुन्दर गजल सभी शेर वाह वाही के काबिल. बधाई.
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ, 
है नहीं कोई भी इंसान कहीं और चलें॥


वाह! वाह!

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 10:23am

वाह सर, कथ्य-तथ्य सभी शानदार। हर शेर वाहवाही का हकदार।
बधाई स्वीकारें

Comment by Bhawesh Rajpal on May 25, 2012 at 9:12pm
बहुत सुन्दर  ! हार्दिक बधाई , डॉ  बाली जी  ! 
Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 9:09pm

शहर ये हो गया शमशान कहीं और चलें॥

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें॥....सब छोड़ कहाँ जाओगे?


कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ,  

है नहीं कोई भी इंसान कहीं और चलें॥.....हकीकत कैसे झुठलाओगे!


जागने और जगाने की बात किससे करें,

यहाँ तो सोया है भगवान कहीं और चलें॥....भगवान नहीं पाषाण है..


कोई जोरू से कोई ज़र से ज़मीं से कोई,

हैं सभी लोग परेशान कहीं और चलें॥....फिर भी फंसाए जान है..


आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥....हर शै बाज़ार है..


दोस्त दुश्मन सभी चेहरे पे लगाए चेहरे,

कर सका मैं नहीं पहचान कहीं और चलें॥.....बस पीठ पे वार है.


वक़्त के साथ बदलते हुए चेहरे “सूरज”

देख के मैं भी हूँ हैरान कहीं और चलें॥....किरने सूरज की दमदार है..

वाह!डॉ. बाली वाह!

Comment by वीनस केसरी on May 25, 2012 at 4:52pm
डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी

रदीफ काफिया के सुंदर संयोजन को आपने सुंदरता से निभाया है

ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाई स्वीकारें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 25, 2012 at 1:26pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल सुन्दर भाव 

Comment by Yogi Saraswat on May 25, 2012 at 11:57am

आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥

ये कहना गलत होगा की बहुत ही अच्छी ग़ज़ल क्योंकि आप हमेशा ही अच्छा ग़ज़ल कहते हैं ! आदरणीय श्री डॉ. सूरज जी आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ ! बहुत ही बढ़िया , सरल शब्द और स्पष्ट सन्देश ! वाह

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 24, 2012 at 6:35pm

आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥

bahut sahi kaha, sir jii. badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service