For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें

शहर ये हो गया शमशान कहीं और चलें॥

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें॥


कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ,  

है नहीं कोई भी इंसान कहीं और चलें॥


जागने और जगाने की बात किससे करें,

यहाँ तो सोया है भगवान कहीं और चलें॥


कोई जोरू से कोई ज़र से ज़मीं से कोई,

हैं सभी लोग परेशान कहीं और चलें॥


आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥


दोस्त दुश्मन सभी चेहरे पे लगाए चेहरे,

कर सका मैं नहीं पहचान कहीं और चलें॥


वक़्त के साथ बदलते हुए चेहरे “सूरज”

देख के मैं भी हूँ हैरान कहीं और चलें॥

                  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on June 4, 2012 at 2:55pm

आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥

 

दोस्त दुश्मन सभी चेहरे पे लगाए चेहरे,

कर सका मैं नहीं पहचान कहीं और चलें

आदरणीय श्री डॉ. बाली , बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ! हर बार की तरह बेमिसाल

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 1:36pm

बेहतरीन गजल

वाह.... वाह..... के लायक

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 9:13pm

आदरणीय बाली जी
             सादर नमस्कार, बहुत सुन्दर गजल सभी शेर वाह वाही के काबिल. बधाई.
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ, 
है नहीं कोई भी इंसान कहीं और चलें॥


वाह! वाह!

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 10:23am

वाह सर, कथ्य-तथ्य सभी शानदार। हर शेर वाहवाही का हकदार।
बधाई स्वीकारें

Comment by Bhawesh Rajpal on May 25, 2012 at 9:12pm
बहुत सुन्दर  ! हार्दिक बधाई , डॉ  बाली जी  ! 
Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 9:09pm

शहर ये हो गया शमशान कहीं और चलें॥

बस्तियाँ हो गईं वीरान कहीं और चलें॥....सब छोड़ कहाँ जाओगे?


कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई यहाँ,  

है नहीं कोई भी इंसान कहीं और चलें॥.....हकीकत कैसे झुठलाओगे!


जागने और जगाने की बात किससे करें,

यहाँ तो सोया है भगवान कहीं और चलें॥....भगवान नहीं पाषाण है..


कोई जोरू से कोई ज़र से ज़मीं से कोई,

हैं सभी लोग परेशान कहीं और चलें॥....फिर भी फंसाए जान है..


आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥....हर शै बाज़ार है..


दोस्त दुश्मन सभी चेहरे पे लगाए चेहरे,

कर सका मैं नहीं पहचान कहीं और चलें॥.....बस पीठ पे वार है.


वक़्त के साथ बदलते हुए चेहरे “सूरज”

देख के मैं भी हूँ हैरान कहीं और चलें॥....किरने सूरज की दमदार है..

वाह!डॉ. बाली वाह!

Comment by वीनस केसरी on May 25, 2012 at 4:52pm
डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी

रदीफ काफिया के सुंदर संयोजन को आपने सुंदरता से निभाया है

ग़ज़ल के लिए ढेरो बधाई स्वीकारें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 25, 2012 at 1:26pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल सुन्दर भाव 

Comment by Yogi Saraswat on May 25, 2012 at 11:57am

आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥

ये कहना गलत होगा की बहुत ही अच्छी ग़ज़ल क्योंकि आप हमेशा ही अच्छा ग़ज़ल कहते हैं ! आदरणीय श्री डॉ. सूरज जी आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ ! बहुत ही बढ़िया , सरल शब्द और स्पष्ट सन्देश ! वाह

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 24, 2012 at 6:35pm

आईना अंधों की बस्ती में बेंचने निकला, 

चल सकी न मेरी दूकान कहीं और चलें॥

bahut sahi kaha, sir jii. badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service