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मुक्तक

तुम देखो हृदय की पीड़ा प्रिये, इस तरह मुझे तडपाती हो
छुप छुप के निहारो एकटक मुझे, दिन रात जिया तरसाती हो
मैं जानूं तुम्हारे मन की व्यथा, दिखलावे को इतराती हो
कह डालो ह्रदय को खोलो प्रिये, तुम मुझसे क्यूँ शरमाती हो

संदीप पटेल "दीप"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 7:39pm

युवा मन की व्यथा शब्दों में :-) बहुत खूब , बधाई श्रीमान |

Comment by Vasudha Nigam on May 24, 2012 at 12:51pm

बहुत ही सुंदर

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 24, 2012 at 11:17am

bahut khoob sandeep ji muktaq hai ya prem ka rasgulla hai maza aa gaya dad kubool kijiye


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 24, 2012 at 8:30am

मन के कोमल भावों से सजा मुक्तक ....बधाई 

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