मुक्तक
तुम देखो हृदय की पीड़ा प्रिये, इस तरह मुझे तडपाती हो
छुप छुप के निहारो एकटक मुझे, दिन रात जिया तरसाती हो
मैं जानूं तुम्हारे मन की व्यथा, दिखलावे को इतराती हो
कह डालो ह्रदय को खोलो प्रिये, तुम मुझसे क्यूँ शरमाती हो
संदीप पटेल "दीप"
Comment
युवा मन की व्यथा शब्दों में :-) बहुत खूब , बधाई श्रीमान |
बहुत ही सुंदर
bahut khoob sandeep ji muktaq hai ya prem ka rasgulla hai maza aa gaya dad kubool kijiye
मन के कोमल भावों से सजा मुक्तक ....बधाई
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