आओ मिल जुल के इस दुनियाँ से मुहब्बत कर लें
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thanks all
कुल्लुवी जी
सादर, बहुत सुन्दर रचना.बधाई.
फर्क मज़हब में गर होता तो रंग-ए-खूँ भी अलग होता
तेरा पीला उसका नीला कहाँ लाल होता
sabka shukriya jinhen rachna acchhi lagi unka aur bhi jyada jinhen nahin lagi kyonki unke liye agli rachna teyyar hai
बिल्कुल सही रचना प्रस्तुत की है आपने।
बधाई
बहुत ही सुदर संदेशपरक प्रस्तुति ..बहुत खूब
aadarniya deepak ji, saadar
bahut sundar sandesh. bahut kuch kah diya badhai
shukriya baggi ji ganesh ji
वाह वाह, सांप्रदायिक सौहार्द को समर्पित एक बहुत ही खुबसूरत रचना, बधाई दीपक कुल्लवी जी,
वाह बहुत खूब फ़रमाया आपने शर्मा जी
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