टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं
सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
विश्व में उपहास के, कारण बनाये जाते हैं
खद्दरों के भेष में, दीमक हजम कर जाते हैं
इस देश की संपत्ति और, इस देश के सम्मान को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है
जिंदगी कि दौड में, हर राह राह रोता है
कब समझ पायेंगे हम, इन नेताओं के स्वांग को
छूटते हैं छूटने दो खून के उफान को
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टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
चलो हटो न रोको डगर, सर पे हम कफ़न लिए,
मिलते है मौत से गले, मरने से अब डर किसे,
सह चुके अब ना सहेंगे, देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को.......वाह वाह बहुत ही प्यारी और ओजपूर्ण रचना, बधाई हो |
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं
सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को...................
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ उमाशंकर जी । जोश भर देने वाली रचना को मंच पर प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई !!
उमाशंकर मिश्र जी आज देश के सूरते हाल पर हर खून में उबाल है हर दिल में रोष है आपकी रचना भी यही सब कह रही है ...बहुत अच्छी
waah waah..........Umashanker Mishra ji, kamaal kar diya ......aapne to rakt me ubaal laa diya .....shabdon ka aisa sundar pravaah ...aur woh bhi aise samyik vishya par..............gazab hai
badhaai..... bahut bahut badhai !
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