For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अग्नि प्रज्वलित हुई धरा पर
परिवर्तन एक गढ़ने को
चला काफिला जनतंत्री का
अब नव चिंतन करने को
नकली रूपया नकली वस्तु
खेल हो रहा ठगने को
महंगाई है खून चूसती
बढ़ रही पिसाचिन मरने को
आ रहे विदेशी ठगने अपने
अर्थ तंत्र को चरने को
भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने को
बनो पतंगा जलने को
वेग हमारा तूफानों का
खड़े युद्ध हम करने को
कर्मवीर बन बढ़े चलो अब
आग नहीं अब बुझने को
प्रश्न खड़ा जीवन मृत्यु का
आर-पार कुछ करने को
लायेंगे बदलाव नया अब
संकल्प ह्रदय में धरने को
परोपकारिता हो गंगा जैसी
जन जन मन में बहने को

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 30, 2012 at 10:19am

"परोपकारिता हो गंगा जैसी जन जन मन में बहने को"बहु खूब लिखा है भाई श्री उमाशंकर मिश्राजी, समय की पुकार को 

आपने बखूबी लिखा है अब शीघ्र परिवर्तन की आवशकता है और इसके लिए जरूरी है " बनो पतंगा जलने को" - लक्ष्मण प्रसद लडीवाला
Comment by राज़ नवादवी on June 30, 2012 at 12:36am

कर्मवीर बन बढ़े चलो अब
आग नहीं अब बुझने को
प्रश्न खड़ा जीवन मृत्यु का
आर-पार कुछ करने को

बहुत खूब लिखा है, जोश से भर देनेवाली पंक्तियाँ हैं! 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 6, 2012 at 11:26pm

आदरणीय सौरभ जी आपका प्रोत्साहन 

हमारे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है 

आपका आभार ...लिखते तो हमें वर्षों हो गए 

परन्तु पहाड के नीचे अब आये हैं 

यहाँ ज्ञानी जनों के बीच बहुत कुछ जानने और सीखने को मिल रहा है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 5, 2012 at 10:48pm

आपकी प्रस्तुत कविता समाज के वर्तमान ऊहापोह को इंगित करती प्रतीत है. आपकी उपस्थिति बनी रहे, शुभेच्छाएँ.

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 5, 2012 at 9:48pm

प्रिय अलबेला जी

आपकी दाद हमारी लिखने...... की  "खाज" को बनाये हुवे है

धन्यवाद  आपका शुक्रिया

आशीष जी धन्यवाद आपकी बधाई के लिए..

Comment by आशीष यादव on June 5, 2012 at 8:35am

बेहतरीन, भावपूर्ण रचना। बधाई स्वीकारिये

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:34pm

waah waah umashankar mishra ji.............aag bhar di hai aapne shabdon me

abhinandan !

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 9:43pm

महिमा जी धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:28pm

अग्नि प्रज्वलित हुई धरा पर
परिवर्तन एक गढ़ने को
चला काफिला जनतंत्री का
अब नव चिंतन करने को

आदरणीय उमाशंकर  जी ..
बहुत कुछ उच्च कोटि के विचार .. बधाई आपको
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 4, 2012 at 9:13pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी धन्यवाद आपका

रेखा जी शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service