For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई जड़ है खोद रहा कोई डाले खाद
हंगामा ऐसा करो  लोग करे फरियाद

फरियादी की आड़ में कोई झोंके भाड़
जबभी डंडा बरसे है कोई हो गया आड़

कोई का मतलब बड़ा राजनीती के लोग
आगे करके जनता को खूब लगाये भोग

आग लगी पेट्रोल में हंगामा था खूब
मुद्दा कोई बदल दिया जनता गई डूब

मालपुए इनको मिले थप्पड़ जन के गाल
राजनीती के लोगों की शतरंजी है चाल

एक बार प्रभु जागके फाड़दो इनकी ढोल
भ्रष्टभ्रष्ट महा भ्रष्टता कितनी खोलें पोल

अन्याय सह चुप बैठते पाप बड़ा प्रचंड
गीता भी है बांचती न्याय हित हो दंड

कब तक सहते जाओगे बने रहोगे धीर
जागो जागो हे जागो हे भारत के वीर

विनय विनम्रता का यहाँ होता है अपमान
छोडो ऐसी जिंदगी कस लो तीर कमान   



Views: 509

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 19, 2012 at 11:59pm

मालपुए इनको मिले थप्पड़ जन के गाल
राजनीती के लोगों की शतरंजी है चाल 

कब तक सहते जाओगे बने रहोगे धीर 
जागो जागो हे जागो हे भारत के वीर 

विनय विनम्रता का यहाँ होता है अपमान 
छोडो ऐसी जिंदगी कस लो तीर कमान  

आदरणीय मिश्र जी ..सुन्दर सन्देश देती जोश जगाती रचना ..आज इसी की जरुरत है कब तक और क्यों सहते ही जाएँ ......

भ्रमर ५ 

 

Comment by Nilansh on June 16, 2012 at 10:15am

bahut badhaai umashankar ji aapko acchi rachna ke liye

saadar

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 11:04pm

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 15, 2012 at 10:58pm

आदरणीय कुशवाहा जी का  पाकर आशीर्वाद

कलम सफल हो जायेगी मिलती  रहे ये खाद

अलबेला जी भर रहे देखो हम पर पम्प

अब तो मच ही जायेगा चारों तरफ हडकंप

आदरणीय कुशवाहा जी प्रिय अलबेला जी आपका तहे दिल से शुक्रगुजार

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 6:23pm

कब तक सहते जाओगे बने रहोगे धीर 
जागो जागो हे जागो हे भारत के वीर 


विनय विनम्रता का यहाँ होता है अपमान 
छोडो ऐसी जिंदगी कस लो तीर कमान   

 

शानदार है  ललकार 

क्यों  सह रहे अत्याचार 

बधाई वीर  भाई उमा शंकर जी, सादर 

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 12:01pm

क्या कहने  उमाशंकर जी...........आज तो आपने  ढोल  ही फाड़ दिया . बड़े तीखे तेवर हैं जनाब  !

एक बार प्रभु जागके फाड़दो इनकी ढोल
भ्रष्टभ्रष्ट महा भ्रष्टता कितनी खोलें पोल

अन्याय सह चुप बैठते पाप बड़ा प्रचंड
गीता भी है बांचती न्याय हित हो दंड

कब तक सहते जाओगे बने रहोगे धीर
जागो जागो हे जागो हे भारत के वीर

विनय विनम्रता का यहाँ होता है अपमान
छोडो ऐसी जिंदगी कस लो तीर कमान  

___मज़ा आ गया .........जगाओ, जगाओ, जगाओ..........ये देश को जगाने का वक्त है

______अभिनन्दन सभी दोहों का ...जय हिन्द !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA जी आदाब  ग़ज़ल कुछ वक़्त और मश्क़ चाहती है। 2122 1122 1122…"
15 minutes ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय दिनेश जी तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है मुबारक बाद पेश है ।  दूसरे शेर में इमारत…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"2122 1122 1122 22/112 जहाँ इंसाफ़ भी बिकता हो वहाँ क्या देखूँबेबसी है मैं ग़रीबी का तमाशा देखूँ चैन…"
3 hours ago
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आादरणीय लक्षमण धामी जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है इसके लिये बधाई स्वीकार करें । "
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"नमस्कार,  शुभ प्रभात, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर 'धामी' जी, कोशिश अच्छी की आपने!…"
6 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब!अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"लोक के नाम का  शासन  ये मैं कैसा देखूँ जन के सेवक में बसा आज भी राजा देखूँ।१। *…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service