भैय्या मोरे मैन हीं दलाली खायो ...भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
ये पार्टी और वो पार्टी मिलकर ...म्हारे मुख लपटायो ..
रे भैय्या मोरे मैनहीं दलाली खायो
देश को ऊंचो नाम करन को
भाइयो के पेट भरण को
कामन वेल्थ करवायो .. रे भैय्या मोरे मैन हीं घपलों करवायो
उनकी गाड़ी पेट्रोल पियत है
म्हारी तो मुफ्त मा चलत है
म्हारी बहु ने पुत्र वधु कह कर
ठेकों मैंने दिलवायो .....पर भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
जब जब जरुरत उनको पड़ी तो
उनकी गड्डी में भी डलवा यो
भैय्या पूछे क्या डलवायो ?
रे भैय्या पेट्रोल डलवायो....रे भइय्या ठेका उन्हें दिलवायो
रेत को ठेकों खनिज को ठेकों
दारू को ठेकों सड़क को ठेकों
जंगल को ठेकों भवन को ठेकों
बन्दर बाँट बंटवायो .... पर भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
वो मांगे तो चंदा कहत हैं
चपरासी को बक्शीस बटत है
बाबू मांगे दस्तूर कहत हैं
फिर म्हारो रुपयों ...
क्यों रिश्वत कहलायो ..... भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
गेरुवा पहनूं मोहे संत कहत हैं
खद्दर में नेता जी रहत हैं
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
कण कण में मै ही समायो
मै सर्वग्य कहायो ....... भैय्या मोरे मै मै नहीं दलाली खायो
ऐ जनता तू है अभी भोला
जेब भरे म्हारा तेरा झोला
थारे मेहनत के पाछे
इनकम टेक्स लगवायो
मै नहीं टेक्स लगवायो .... भैय्या मोरे मै मै नहीं दलाली खायो
कुर्सी जब खतरे में पड़त है
वो हमसे तब युद्ध करत हैं
भोली जनता को गुमराह करन को
कारगिल में युद्ध करवायो
भैय्या मोरे मै नहीं युद्ध करायो... भैय्या मोरे मै मै नहीं दलाली खायो
ऐ भैय्या कुर्सी ने हमकों
बहुत ही नाच नचायो
भाई कुर्सी अपनी कुर्सी
इसके लिए दंगो बेदर्दी
मिल जुल कर करवायो ...रे भैय्या मोरे मै नहीं दंगो करवायो
सीधो साधो गुजरात जहाँ को
गाँधी बिनोबा नाम वहाँ को
गुजरात में छिप छिप के मैंने
आग वहाँ लगवायो
और गोधरा कांड करवायो ..भैय्या मोरे मै ने ही कांड करवायो
इंसा को हिंदू बनवाकर
इंसा को मुसलमाँ बनाकर
आपस में लड़वायो
खून खच्चर मचवायो ...रे भैय्या मोरे खून खच्चर मचवायो
ऐ जननी तू मन की अति भोली
ताबूतों में उठी तेरी डोली
लाल तेरे तेरी लाज के खातिर
सीमा में जान लुटायो
आपनों प्राण गंवायो .....
मै घर में बैठो बैठो
टेलीविजन के आगे
ताली पे ताली बजायो
रे भैय्या मेरे मै ने ही दलाली खायो
रे भैय्या मोरे ताबूत कांड करायो
पेट्रोल पम्प बटवायो
सूटकेश पचायो
खून पे खून बहवायो
रिश्वत खायो .....रे भैय्या मोरे हम ने ही दलाली खायो
Comment
आदरणीय और प्रिय अलबेला जी ,भाई उमाशंकर मिश्र जी और प्रिय संदीप जी आप सब को चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक १५ में प्रथम द्वितीय तृतीय स्थान ले विजयी रहने पर हार्दिक और लख लख बधाइयाँ
उमाशंकर भाई नमस्कार ! नेताओं और उनकी कारस्तानियों पर अच्छा तंज़ कसा है आपने ने इस रचना के द्वारा। आपको बहुत बहुत बधाई।
प्रिय सुरेन्द्र जी आपका ह्रदय से आभार आपने दिल की बात कर दी सौ आने सच
वो मांगे तो चंदा कहत हैं
चपरासी को बक्शीस बटत है
बाबू मांगे दस्तूर कहत हैं
फिर म्हारो रुपयों ...
क्यों रिश्वत कहलायो ..... भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
प्रिय मिश्र जी काविले तारीफ़ रचना करारा तमाचा मारती हुयी भ्रष्टाचारियों के मुंह पर ..आँखें अब भी न खुलें इनकी तो न जाने क्या करना होगा आँखें खोलने के लिए अभी आगे .....भ्रमर ५
प्रिय योगी सारस्वत,आदरणीय रेखा जी व्यंग का टेस्ट चटखारा मार कर लेने के लिए आभार
आपने इतनी लंबी रचना को पढ़ा और झेला सादर आभार मुझे लगा की पाठक कहीं बोर ना हो जाए
धन्यवाद जी
उमा शंकर जी ,सादर नमस्ते ,
जब जब जरुरत उनको पड़ी तो
उनकी गड्डी में भी डलवा यो
भैय्या पूछे क्या डलवायो ?
रे भैय्या पेट्रोल डलवायो....रे भइय्या ठेका उन्हें दिलवायो,सटीक व्यंग ,बधाई
ऐ भैय्या कुर्सी ने हमकों
बहुत ही नाच नचायो
भाई कुर्सी अपनी कुर्सी
इसके लिए दंगो बेदर्दी
मिल जुल कर करवायो ...रे भैय्या मोरे मै नहीं दंगो करवायो
क्या सटीक व्यंग्य है ! वाह , बहुत बढ़िया साब
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online