टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं
सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
विश्व में उपहास के, कारण बनाये जाते हैं
खद्दरों के भेष में, दीमक हजम कर जाते हैं
इस देश की संपत्ति और, इस देश के सम्मान को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है
जिंदगी कि दौड में, हर राह राह रोता है
कब समझ पायेंगे हम, इन नेताओं के स्वांग को
छूटते हैं छूटने दो खून के उफान को
Comment
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
सराहना के लिए विश्वजीत जी धन्यवाद आपको
शुक्रिया महिमा जी
वाह!!! आदरणीय उमाशंकर जी .. आपने तो जोश भर दिया .. खून में उबाल ला देने वाली ओजपूर्ण कृति के लिए आपको साधुवाद
प्रिय संदीप जी आदरणीय रेखा जी
हौसला अफजाई के लिये आपको धन्यवाद
उमाशंकर जी ,
आदरणीय प्रिय अलबेला जी ,आदरणीय राजेश कुमारी जी ,
आदरणीय डॉ.सूर्य बाली जी,प्रिय बागी जी
आदरणीय कुशवाहा जी आपका शुक्रगुजार हूँ जो आपने इस
खाकसार को सराहा आपका यह प्यार हमें आसमान में सुराख़ बना देने
को उत्प्रेरित करता है धन्यवाद ......
इस ओजपूर्ण रचना के लिए साधुवाद आपको साहब
बहुत खूब क्या बात है
आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है
जिंदगी कि दौड में, हर राह राह रोता है
कब समझ पायेंगे हम, इन नेताओं के स्वांग को
आदरणीय उमाशंकर जी, सादर
नेता के स्वांग को अपना आदर्श मानेंगे तो स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी. सुन्दर रचना हेतु बधाई.
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