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कविताओं में बाँचिये , शीतल मंद समीर
शब्दों में ही बह रहा , निर्मल निर्झर नीर
निर्मल निर्झर नीर,हरा वसुधा का आँचल
चंदन जैसी मृदा , गगन इतराता बादल
अमृत-सी जलधार कहाँ अब सरिताओं में
खोया पर्यावरण , ढूँढिये कविताओं में |

 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 7, 2012 at 10:54am

bahut saargarvit likha hai sir ji ....................saadar badhai sweekar karen sir ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 7, 2012 at 9:46am

मिली बधाई हार्दिक, मित्र उमा आभार

बनी रहेगी मित्रता,बना रहेगा प्यार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 7, 2012 at 9:40am

देहरादून से मिला, प्रोत्साहन, आभार !

नेह सदा मिलता रहे,सृजन होय साकार. |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 7, 2012 at 9:31am

दृष्टि पारखी जहँ पड़े,सृजन सफल तहँ होय

आभारी मन रात दिन , प्रेम - प्रदीप सँजोय.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 7, 2012 at 9:20am

प्राची से आये दिवस,जागे यह संसार

मिली बधाई कीमती,प्राची जी आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 7, 2012 at 8:53am

अलबेला जी आपका बहुत बहुत आभार,

धन्य हो गई कुंडली,पाकर निर्मल प्यार..

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 6, 2012 at 11:38pm

प्रिय अरुण भाई कुंडली की  बधाई के साथ साथ 

आपको आपकी शादी की  सालगिरह कि हार्दिक बधाई 

भाभी जी को भी शादी की हार्दिक बधाई 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 6, 2012 at 11:13pm

सही कहा भाई अरुण आपने 

प्रकृति का सुन्दर रूप अब 

पढ़ने को हि मिलेगा 

पर्यावरण की  रक्षा में आपकी इस कुंडली  का योगदान सराहनीय है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2012 at 4:26pm

शानदार कुंडली अरुण कुमार जी बहुत बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 6, 2012 at 1:36pm

बहुत सुन्दर कुंडली, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई.

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