समय सँपेरा बीन बजाता छलता जाये
नागिन जैसी उम्र संग ले चलता जाये.
तन्त्र -मंत्र के जाल सुनहले पग पग पर हैं
नख शिख पल पल मोम सरीखा गलता जाये.
रीझ न जाओ माया नगरी पर जगती की
तारा ही है सूरज ,उगता ढलता जाये.
बंधन अच्छा लगता है जो प्रीति भरा हो
धागों में ही बँध इंसान सम्हलता जाये.
ईश्वर ने सुख-दु:ख की रचना कुछ ऐसे की
हो प्रकाश तब ही जब सूरज जलता जाये.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर(म.प्र.)
Comment
प्रवाहमय कविता के लिये आपका सादर धन्यवाद, भाई अरुण जी.
बंधन अच्छा लगता है जो प्रीति भरा हो .. बहुत सुन्दर !
vaah arun ji jitni tareef karo is geet ki vo kam hi hogi.
हो प्रकाश तब ही जब सूरज जलता जाये...बहुत ही सुन्दर अरुण कुमार जी.
तन्त्र -मंत्र के जाल सुनहले पग पग पर हैं
नख शिख पल पल मोम सरीखा गलता जाये.
रीझ न जाओ माया नगरी पर जगती की
तारा ही है सूरज ,उगता ढलता जाये.
आदरणीय अरुण जी,
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सम्प्रेषण के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
बंधन अच्छा लगता है जो प्रीति भरा हो
धागों में ही बँध इंसान सम्हलता जाये.
अरुण सर जी भावपूर्ण एवं संदेशपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें .
BHAVNATMAK AUR PRAVAH PURN RACHNA HETU BADHAI.
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