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वैष्णव जन को प्रेमी कहिये जो पीर परायी जाने रे.
बधाई.
बहुत सुंदर कथा..गणेश. एक माँ ही दूसरी माँ का दर्द समझ सकती है.
bahut achchi laghukatha he bagi ji bahut bahut mubarakbad pesh karta hoon kubool karein
वाह वाह बागी जी,
करुणा और पर पीड़ा की अनुभूति का बोध कराती इस मार्मिक लघुकथा को मेरा नि:शब्द नमन
धन्यवाद ऐसी उत्तम रचना प्रस्तुत करने के लिए
माँ के हृदय की व्यथा एक माँ ही समझ सकती हैं, इस खूबसूरत कृति के लिए धन्यवाद
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