मैं भी कुछ सुनाऊं तुमको,
जो ऐसी भी शक्ति दी होती
हे माँ तेरी चरणों में,
कुछ मेरी भी अर्जी तो होती
मैं दीन हूँ माँ समझो,
पर हीन न समझा करो
सीने से न अपने सही,
चरणों से न दूर करो
मैं पुत्र कुपुत्र हूँ माँ,
समझा न तेरे मन को
तुम तो माँ कुमाता नहीं,
समझो तो मेरे मन को
थोड़ा मुझ को भी दे दो माँ,
स्नेह अपनी झोली से तुम
है माँ बेटे का नाता,
माँ खोयी हो कहाँ तुम |
Comment
आपका हार्दिक धन्यवाद PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी......
माता के प्रति भक्ति, श्रद्धा को नमन , बधाई.
आपका हार्दिक धन्यवाद Rekha Joshi जी......
मनु जी ,बहुत बढ़िया पंक्तियाँ ,
श्री मान अलबेला खत्री जी आपने तो मेरे शव्दो में जान डाल दिया, आपका तहे दिल से शुक्र गुजार व आभारी रहूँगा |
बहुत अच्छा लगा जगदानन्द झा मनु जी आपकी कविता बांच कर
बधाई आपको इस रचना के लिए
____एक सुझाव है कि कृपया प्रकाशित करने के पहले चैक कर लिया कीजिये . क्योंकि कई बार टंकण में जल्दबाजी के कारण बहुत सी त्रुटियाँ भी रह जाती हैं . साथ ही पंक्तियों के बीच थोड़ा खाली स्थान भी रखा कीजिये ताकि पढ़ने में आसानी हो और आकर्षक भी लगे. मनु जी, कविता सब कलाओं में सुन्दर कला है . इसलिए कविता की प्रस्तुति भी सुन्दर दिखनी चाहिए .
मैंने आपकी इस कविता में आपकी अनुमति के बिना कुछ बदलाव किया है ..यदि पसन्द आये तो आप प्रयोग कीजिये और न पसन्द आये तो इसे वापिस मेरे मुंह पर मार दीजिये
____
मैं भी कुछ सुनाऊं तुमको,
जो ऐसी भी शक्ति दी होती
हे माँ तेरी चरणों में,
कुछ मेरी भी अर्जी तो होती
मैं दीन हूँ माँ समझो,
पर हीन न समझा करो
सीने से न अपने सही,
चरणों से न दूर करो
मैं पुत्र कुपुत्र हूँ माँ,
समझा न तेरे मन को
तुम तो माँ कुमाता नहीं,
समझो तो मेरे मन को
थोड़ा मुझ को भी दे दो माँ,
स्नेह अपनी झोली से तुम
है माँ बेटे का नाता,
माँ खोयी हो कहाँ तुम |
_________सादर
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