होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
कभी बन आँखों में आँसू
कभी बन दिल में कसक
रातों को जगाने सपनों में
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
मैं अपने गाँव का, गाँव मेरा है
उसके सपने सारे सपने मेरा है
होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
मैं अपने गाँव को सम्हालूँगा
मैं अपने सपनों को फिर से सजाऊंगा
टूटा हुआ तारा हूँ मैं जिस गाँव का
फिर से वहीं पे जाके जुड़ने को जाऊँगा
बसाया तो मैंने भी सपनों का सुंदर शहर
सब कुछ पाया गाँव नहीं भूल पाया मगर
जहाँ मैंने कदम पहला-पहला रखा
चलने से पहले जिस मिट्टी को चक्खा
तोतली बोली को मेरे सुना जहाँ सबने
सुनने को जाउँगा उन सबके मैं सपने
होता हूँ जब अकेला चुपके से आता है
मुझे मेरा गाँव याद अब भी आता है
Comment
आपका हार्दिक धन्यवाद PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी......
तेरा गांव मेरा गांव कैसे भूल सकता धूप छांव
जनम हुआ था मेरा वहीँ पसारे थे जमीं पे पाँव
बधाई
धन्यवाद एवं सादर प्रणाम Ganesh Jee "Bagi" साहेब
खुबसूरत रचना, गाँव से लगाव किसे नहीं होता, गाँव की मिटटी की बात ही कुछ और है |बधाई स्वीकार कीजिये मनु जी |
डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी, राजेश कुमारी जी, आशीष यादव जी, Rekha Joshi जी, Albela Khatri जी , आप सभी का हार्दिक धन्यवाद एवं सादर प्रणाम , आप सभी का इतना स्नेह पा कर मैं धन्य हो गया |
जहाँ मैंने कदम पहला-पहला रखा
चलने से पहले जिस मिट्टी को चक्खा
तोतली बोली को मेरे सुना जहाँ सबने
सुनने को जाउँगा उन सबके मैं सपने....
मनु जी ! बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ अतीत की याद ताज़ा करती हुई। इतनी सुंदर रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ !!
अतीत की यादें कभी भुलाए नहीं भूलती और फिर जहां पले बढे वहां की बात ही द्द्सरी है बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना मनु जी बहुत बधाई
Manu ji
मैं अपने गाँव को सम्हालूँगा
मैं अपने सपनों को फिर से सजाऊंगा
टूटा हुआ तारा हूँ मैं जिस गाँव का
फिर से वहीं पे जाके जुड़ने को जाऊँगाbahut achchhi rachna ,badhai
गाँव तो गाँव है जगदानन्द जी, गाँव की महक जीवन भर नहीं जाती............
बधाई इस सुन्दर लेखन के लिए
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