अरुण करुण रतनार गगन में
कुछ चंचल कुछ शांत भाव में लीन
अद्वैत रागिनी अलापती ...
धुल धूसित आभा से कुछ थकी मंशा से
मधुर-मधुर करुण ध्वनि की रागिनी !
यों डगमग हलचल सरिता की लहरों सी
उथल पुथल कर गिरती चलती
असफल पथिक की करुण कथा
शांत-शांत शून्य में झाँकती
रोती मुस्कराती रूपसी
हरित धरा के अधर चूमती
बिलखती खुदगर्ज़ प्रहार की ध्वनि सी
कुञ्ज काननों में गूँजती बेवशी..!
नाज़ुक कपूर सी तिमिरांचल से फूँकती
यों घनीभूत पीड़ित चाँद सी शीतल
अम्बर के आनन सी ताकती
शांत सागर की नाव
अव्यक्त सी निहारती !
क्रोड में भूसर्व को फुसलाती बहलाती
करुण पालने में मदमस्त बावली
झुलाती, सुलाती निःचश्म , निष्कपट
कलियाँ हिलतीं वृन्त में ज्यों धीरे धीर ..
निश्तब्ध, निःशब्द, शांत शांत .
व्योम की तारिकाओं सी चर-अडिग
आसन्न , अनल , गतिज
वह सुंदरी चमकती दमकती !!
Comment
सराहना करने के लिए आप सब का तहे दिल से शुक्रिया. :)
वाह ! बहुत ही सुन्दर कविता !
सुन्दर शब्द शिल्प !
और शब्द सामर्थ्य के क्या कहने ! वाह !!!!!!!!!
bahut sundar is apratim rachna ke liye badhaai
यों डगमग हलचल सरिता की लहरों सी
उथल पुथल कर गिरती चलती
असफल पथिक की करुण कथा
शांत-शांत शून्य में झाँकती
रोती मुस्कराती रूपसी
हरित धरा के अधर चूमती
बिलखती खुदगर्ज़ प्रहार की ध्वनि सी
कुञ्ज काननों में गूँजती बेवशी..!
बहुत सुन्दर भाव एवं रचना हेत बधाई, महोदय
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