35 वर्ष की सेवा के बाद 31 जनुअरी ,2002 को कलक्टर कार्यलय में अधीक्षक पद से सेवा-निवृत ज्ञान स्वरुप भार्गव का कार्यलय में भव्य विदाई समारोह हुआ | स्वयं कलक्टर साहिब ने उनके कार्य की प्रशंसा की और उन्हें सफा, माला पहनकर स्वागत किया | कुछ साथी उन्हें घर तक छोड़ने आये, जहाँ द्वार पर परिवार के सदश्यों ने उनकी आरती उतार अन्दर ले गए| वहां स्वल्पाहार का आयोजन हुआ| ज्ञानस्वरूप ने अपने पोते-पोतियों,अपने बहिन-बहनोई और दोहिते को भेंट-उपहार देकर विदा किया|
दूसरे दिन से श्री भार्गव अपनी पेंशन लो स्वीकृति जारी कराने हेतु पेंशन निदेशालय के चक्कर लगाने लगे | विलम्ब होते देख श्रीभार्गव पेंशन अधिकारी से अनुनय-विनय करने लगे तो पेंशन अधिकारी ने उनका पेंशन प्रकरण इस आक्षेप के साथ लौटा दिया क़ि श्री भार्गव द्वारा माह जनवरी,1973 से नवम्बर,1974 क़ि अवधि में अवैतनिक अवकाश के कारण उनकी वेतन वृद्धि संशोधित करते हुए, सेवा-निवृति तक सम्पूर्ण वेतन संशोधित कर, पेंशन प्रकरण बना कर भिजवावे | कलक्टर कार्यालय ने वेतन कम करते हुए संशोधित पेंशन प्रकरण भिजवाया,इस आधार पर पर पेंशन कम स्वीकृत हुई तो श्री भार्गव ने अपने पैरोकार के जरिये नोटिस भिजवाया क़ि उनके चिकत्सा आधार पर लीगयी अवकाश अवधि का वेतन स्वीकृत किया गया था, अतः उस अवधि में दी गयी वेतन वृद्धि महालेखाकार के अंकेक्षण दल ने भी सही माना था| अतः मेरे पेंशन लाभों में कटौती गलत है | कलक्टर कार्यालय और पेंशन निदेशालय से अनुकूल उत्तर न मिलाने के कारण आखिर दो वर्ष बाद सीधे ऊच्च्च न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया गया |ऊच्च्च न्वायालय में गत 7 वर्षो से मामला विचाराधीन है |
गत ६-७माह से ज्ञानस्वरूप भार्गव लकवे से पीड़ित है | भार्गव की पत्नी तारीख पेशी पर न्यायालय जाती है, जहाँ वकील साहिब का मुंशी हर बार ५० रूपए ले लेता है|आखिर बेचारी भार्गव की पत्नी निर्मला ने हिम्मत कर मुख्यमंत्री से प्रार्थना की | मुख्य-मंत्री के सचिव ने पेंशन निदेशक से बात कर जानकारी की और निर्मला को बताया क़ि आपका मामला तो न्यायलय मेंलंबित है, अतः सरकर कुछ भी नहीं कर सकती |न्यायलय में आपसे पहले हजारों मामले विचाराधीन होते है, ऐसे में आप अपना दावा न्यायलय से वापिस लेकर जो पेंशन लाभ मिले, वाही लेकर संतुष्ठी करो, इसी में आपकी भलाई है |
थक कर निर्मला ने न्यायलय से मुकदमा वापिस लेने का मन बना अगले दिन वकीलजीसे मिलाने का निर्णय किया | प्रातः काल चाय लेकरअपने पति को जगाने गयी तो श्री भार्गव नहीं जगे | डाक्टर को बुलवाया,जिसने श्री भार्गव क़ि ह्रदय गति रूक जाने के कारन म्रत्यु हो जाना बताया | बेचारी निर्मला पर तो मानों पहाड़ ही टूट पड़ा | पारिवारिक रश्म-रिवाज के कारण एक माह तो घर से नहीं निकली | एक माहपश्चात वकीलजी से मिलकर न्यायलय में अपने पति का म्रत्यु प्रमाण-पात्र लगा, पेंशन प्रकरण का सहानुभूति पूर्वक प्रमाणनिपटारा करने का आवेदन किया|
आखिरकार न्यायाधीश महोदय ने श्री भार्गव के पक्ष में निर्णय देते हुए कहाँ क़ि मामले में अवकाश अवधि का मामला २५ वर्ष पुराना है |इन २५ वर्षो में कई बार जांच और अंकेक्षण होने, वेतन स्थिरीकरण होने, वेतन वृधि आदि के अतिरिक्त वरिष्ठ लेखादिकारी द्वारा "सेवेभिलेख क़ि सम्पूर्ण जांच कर समस्त वेतन निर्धारणएवं वेतन-वृधिया सही पाई गयी" का प्रमाण-पात्र अंकित है|ऐसे में सेवा-निव्रती पर पेंशन निदेशक का आक्षेप लगा, पेंशनर को पेंशन से वंचित रखना अनुचित है | पेशनरों के प्रति सरकार को संवेदनशील होना चाहिए | अब श्री भार्गव की पत्नी को बगैर वेतन कम किये पेंशन स्वीकृत कर, श्री भार्गवकी म्रत्यु से सात वर्ष तक मूल पेंशन राशि, एवं एरियर राशि का अविलं भुगतान मय ब्याज किया जावे,तथा ५० हजार रुपये बतौर हर्जाने के और दिए जावे, जो सरकार चाहे तोपेंशन विभाग में जिम्मेदार अधिकारी से भी वसूल कर सकती है | समस्त भुगतान एक माह में करे | विलम्ब से मिले न्याय पर बेचारी
निर्मला के मुहं से निकला-
"काश मेरे पति को न्याय, उनके जीवित रहते मिल पाता"| न्याय में भले ही अंधेर न हो, पर देर होने से न्याय का परिणाम जानने वाला ही नहीं रहा तो न्याय कैसा ?
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Comment
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहजी, और वसुधा निगम जी,
बहुत सटीक स्थति बयां की है. लोगों को उनके जीवन में न्याय न मिल सके हमारा भारत महान कैसे. शर्म शर्म शर्म
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