खंडेला गाँव से गौरी गंगोत्री नगर उच्च सिक्षा हेतु आई जहां उसने विवेकानंद महाविद्यालय में दांखिला लिया | तीन वर्ष की अध्ययन अवधि में उसकी सुनीला के साथ मित्रता ही नहीं, बल्कि परिवार के लोगो के साथ भी अच्छा परिचय हो गया | धीरे धीरे सुनीला का भाई धर्मेन्द्र गौरी को चाहने लगा | धर्मेन्द्र के पिताजी प्रोफ. सोमेंद्रनाथ टेगोर महाविद्यालय से सेवा निवृत होगये | उन्होंने होनहार लड़की देखकर गौरी के पिता से अपने लडके धर्मेन्द्र का रिश्ता करने का प्रस्ताव् किया, जो गौरी के पिता ने गौरी की भावनाओ को देखते हुए स्वीकार कर लिया | रिश्ता पक्का समझ सगाई की संक्षिप्त रस्म कर दो माह पश्चात शुभ मुहूर्त में विवाह करना तय हो गया |
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किन्तु सगाई की रश्म के पंद्रह दिन बाद ही गौरी ने अचानक सुबह सुबह उठते ही अख़बार में पढ़ा की प्रो. सोमेन्द्र के बड़े लडके नरेन्द्र अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उसका गर्भपात कराने के जुर्म में शुभम लेबोरेटरी के डाक्टर पोंचू सक्सेना के साथ गिरफ्तार कर लिए गए | उसी वक्त गौरी ने सुनीला से बात कर जानकारी की, और अपने पिता से उसका उस परिवार में विवाह न करने का अनुरोध किया |धर्मेन्द्र ने गौरी को काफी समझाया क़ि भैया नरेन्द्र लड़की के खिलाफ नहीं है, वह तो पहला बच्चा लड़का चाहते थे, और जिस भ्रूण हत्या क़ि तुम बात कर रही हो,तो भी उसमे मेरा तो कोई हाथ नहीं है |
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गौरी ने विवाह से स्पष्ट इंकार करते हुए धर्मेन्द्र से कहाँ क़ि भ्रूण हत्या जिस परिवार में हो, उसमे तुम्हारे भाई और तुम्हारे माँ-बांप क़ी सहमति का अर्थ बेटी जन्म पर तुम्हारे परिवार क़ी नकारात्मक सोच को दर्शाती है | और तुम्हारा तटस्थ रहना तुम्हे भी दोषी नहीं तो, सोच को तो दर्शाता ही है | गलत कार्य में तटस्थ रहना मेरी राय में पाप का भागीदार बनाता है |मुझे शहर के पढ़े लिखे युवक के बजाय भले ही गाँव के साधारण पढ़े लिखे युवक से विवाह करना पड़े,पर सभ्य और सुसंस्कृत परिवार के लडके से विवाह करना पसंद करूंगी | आप से मै अब अपना सम्बन्ध नहीं कर सकती, कृपया मुझे क्षमा करे |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला, जयपुर
Comment
तटस्थ रहना भी उतना ही अपराध है
राजेश कुमारीजी,अल्बेलाला खत्रीजी, रेखा जोशीजी, और आशीष यादवजी.
लक्ष्मण जी सचमे वो समय आ गया है जब आज की युवा पीढ़ी लड़कियों को ही इस तरह का निर्णय लेना पड़ेगा |आपकी कहानी पढ़कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई बधाई आपको |
आदरणीय लक्ष्मण जी ,बहुत बढ़िया रचना है पाप के भागीदार ,हार्दिक बधाई |
बहुत बहुत अभिनन्दन और नमन आपको इस दास्ताँ के लिए
लक्ष्मण प्रसाद जी,
अब सचमुच ऐसा ही निर्णय लेने का समय आ चुका है .....
सादर
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