उसने यारों मुझको पागल कर रखा है।
उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है॥
अश्क़ों की बारिस को अब मैं रोकूँ कैसे,
आँखों को सावन का बादल कर रखा है॥
ख़ुद ही बढ़ के जाम उठा लेंगे महफिल में,
उसकी उलझन को मैंने हल कर रखा है॥
सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥
मेरे ख़यालों में छाया रहता है हरदम,
जीना मुश्किल उसने पल पल कर रखा है॥
जब से उसकी चाहत रूठी तबसे उसने,
दिल के घर आँगन को जंगल कर रखा है॥
ज़हरीले साँपों ने घेरा मुझको “सूरज”
मैंने जब से ख़ुद को संदल कर रखा है॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
Comment
khoobsoorat ghazal surya bhai
जय हो डॉ सूर्य बाली 'सूरज' जी,
क्या ख़ूब अन्दाज़
क्या ख़ूब अलफ़ाज़
मस्त ग़ज़ल.........
सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥
_____इस शे'र ने तो आपका कायल कर दिया
__बधाई !
ज़हरीले साँपों ने घेरा मुझको “सूरज”
मैंने जब से ख़ुद को संदल कर रखा है॥ बहुत सुन्दर भाव के साथ उत्तम प्रस्तुति
क्या बात है डॉ सूर्य बाली 'सूरज' जी,
वाह ! वाह ! बहुत ख़ूब ग़ज़ल..........
ख़ास तौर पर यह शे'र दिल में उतर गया -
सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥
___बधाई
जब से उसकी चाहत रूठी तबसे उसने,
दिल के घर आँगन को जंगल कर रखा है॥
अलग और बढ़िया अंदाज .. बधाई .
सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥.....kurban....kya sher hai “सूरज” bhai.
आदरणीय सूरज जी,
सादर
शेरो के गुलदस्ते को
लोग गजल कहते हैं
तपता रहता है जो
उसको सूरज कहते हैं
बधाई.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online