तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी
आओ, मिल कर देश चबायें बाबाजी
राजनीति में किसी तरह घुस जाएँ तो
जीवन भर आनन्द मनायें बाबाजी
चोर - चोर मौसेरे भाई हैं तो फिर
इक दूजे के काम में आयें बाबाजी
क्लब में चाहे मुन्नी को बदनाम करें
मंच पे जन गण मन ही गायें बाबाजी
सबकुछ खोया, तब फिल्मों में आई हैं
ये सुन्दर - सुन्दर बालायें बाबाजी
घर से ज़्यादा तपन है बाहर सड़कों पर
कहाँ पे जा कर राहत पायें बाबाजी
पेट की खातिर दिन भर दौड़े 'अलबेला'
जी करता है, अब सो जायें बाबाजी
JAI HIND !
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया राज़ जी.......
धन्यवाद
तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी
आओ, मिल कर देश चबायें बाबाजी
तंज और मिजाह के गुदगुदा देनेवाले जुमले. बहुत अच्छे!
- राज़
आदरणीय उमाशंकर मिश्रा जी..........
एक ज़माना था जब बिहारी जैसे कवि को एक एक दोहे की रचना के लिए राजा द्वारा सोने की मुहरें इनाम में मिलती थीं....कुछ वैसा ही मुझे यहाँ लग रहा है जब हर रचना पर आप इस प्रकार उन्मुक्त सराहना देते हो..........आप धन्य हो..आपका प्यार धन्य है जी.........
आपकी कविता ने ख़ूब प्रभावित किया ...मैंने कहा झंडे गाड़ दिए जी........
___सादर साभार
सादर समर्पित...आदरणीय
आप कहें या हम एक ही बोली है
आप प्यार से दो हमारी गोली है
देश चबाये कहो दो इनको देशभक्षी
इनसे पीछे हो गए हैं देखो नरभक्षी
ये दीमक की तरह यहाँ घुस आते है
देश सेवा के नाम में वेतन पाते हैं
बाहर झगड़ा झंझट ये दिखलाते हैं
फायदा हो इनका तो एक हो जाते हैं
भोर जन गण बजे या बजे वंदे मातरम
रात को ना जाने क्या क्या..... चबाते हैं
आपकी बहेतरीन रचना को दंडवत हमेशा की तरह
बहेतरीन अलबेली प्रस्तुति के लिए बधाई हो प्रिय अलबेला जी
धन्यवाद डॉ प्राची सिंह जी......
waah waah kya baat hai..
आदरणीय प्रदीप जी, आप जैसे वरिष्ठ जनों का स्नेह और आशीर्वाद मेरी सबसे बड़ी पूंजी है . आपके मन को मेरी कोई रचना भा गई, इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है
___आपका धन्यवाद !
आभार....कुमार गौरव अजीतेंदु जी.........
धन्यवाद राजेश कुमारी जी,
बाबाजी को आपकी दाद बहुत पसन्द आई.....
_____साभार
धन्यवाद नीलांश जी........
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online