For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी

इस दुनिया में कौन सुखी है बाबाजी
जिसको देखो, वही दु:खी है बाबाजी

तुम तो केवल चखना लेकर आ जाओ
बोतल हमने खोल रखी है बाबाजी

इसकी चन्द्रमुखी है, उसकी सूर्यमुखी
मेरी ही क्यों  ज्वालमुखी है बाबाजी

रिश्वत की मदिरा फिर उससे न छूटी
जिसने भी इक बार चखी है बाबाजी

बाप से बढ़ कर कौन सखा हो सकता है
माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी

काम अपना जी जान से करने वालों ने
अपनी किस्मत आप लिखी है बाबाजी

पथ के काँटे  क्या कर लेंगे 'अलबेला'
मैंने चप्पल पहन रखी है बाबाजी 

JAI HIND !

Views: 736

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 19, 2012 at 8:18am

सम्मान्य अम्बरीश जी,
बाबाजी आपका कोटि कोटि  धन्यवाद अदा करते हैं
आपका दिन शुभ हो......
जय हो !

Comment by Albela Khatri on June 19, 2012 at 8:13am

शुभ प्रभात  आदरणीय  सौरभ पाण्डेय जी एवं समस्त  ओ बी ओ परिवार को मेरा  प्रातः कालीन प्रणाम.

श्रीजी, मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ . वाह वाही की अभीप्सा में  कविता कमज़ोर नहीं  होनी चाहिए . परन्तु  हुज़ूरेआला, साहित्यकार  और  मंचीय कलाकार दो भिन्न  भिन्न धारायें हैं . साहित्यकार दीर्घजीवी होता है.  वह इतिहास बनना चाहता है. इसलिए ऐसा साहित्य सप्रयास रचता है  जिसका सरोकार  रहती दुनिया तक बना रहे और  लोग उनकी रचना  से  सीख अथवा  सन्देश लेते रहें . जबकि  मंचीय कलाकार को तात्कालिक प्रभाव दिखाना  होता है . उसकी नज़र इतिहास बनाने पर नहीं,  अपना दो कमरों का मकान बनाने पर होती है . लिहाज़ा वह कुछ ऐसे शब्द अथवा  मसाले उसमें भर देता है कि कविता  मनोरंजक  हो जाती है और कलाकार की वाहवाही भी .

मेरे मालिक, दोनों अपनी अपनी जगह सही हैं.  साहित्यकार बनने के लिए गहन अध्ययन, सतत सृजन और सतत समर्पण अनिवार्य है जबकि  कलाकार को  सिर्फ़ तुकबंदी करके  प्रस्तुत करने के अलावा और कोई  बन्दिश नहीं निभानी पड़ती.  संयोग से मैं भी उन्हीं कलाकारों में से एक हूँ,  इसीलिए मैं  बहुत शर्माता हूँ  जब लोग वाह वाह कहते हैं . हाँ, अब आपकी जमात में आ गया हूँ  तो सुधार हो जाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है . और जिस दिन ऐसा हो जाएगा उस दिन सब मिल कर करेंगे " हो हो हो हो "
__आपके स्नेहिल  विचार मेरे लिए  ऊर्जापूरक यन्त्र  है. ये चालू रहे...........
_____सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on June 19, 2012 at 1:47am

//बाप से बढ़ कर कौन सखा हो सकता है
माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी

काम अपना जी जान से करने वालों ने
अपनी किस्मत आप लिखी है बाबाजी//

मनभावन अशआर कहे हैं बाबा जी

साधुवाद स्वीकार करें ओ बाबाजी

सवा सेर के शेर कहे हैं अलबेला,

बेहतरीन ये गज़ल कही है बाबा जी..               जय हो जय हो ..............:-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2012 at 12:12am

अभी-अभी अपनी प्रतिक्रिया के संदर्भ में हमने प्रस्तुत पंक्तियाँ कहीं हैं, आदरणीय --  रचनाओं का मात्र मात्राओं ही नहीं, सन्निहित भावनाओं से भी अन्योन्याश्रय सम्बन्ध होता है.

आदरणीय अलबेलाजी, कविता की कोई विधा शिल्प के साधन को धारती अवश्य है किंतु काव्य-विस्तार में सफल दूरियाँ अपनी भावनाओं के प्रस्तुतिकरण के क्रम में ही तय करती हैं.

आपकी रचनाओं को मैंने जितना कुछ देखा-जाना है, यही समझा है कि इनमें तथ्यात्मकता के पुट को रोचकता के साथ रखने का सुप्रयास होता है. कई-कई बार साहित्यिक दृष्टिकोण से रचनाओं में मंचीय प्रभाव को रचना संप्रेषण के क्रम में बाधा घोषित किया जाता रहा है, लेकिन यह उस लेखक के ऊपर निर्भर करता है कि शिल्प (साधन, जिसपर रचना सवार होती है) को वह कितना साधने को उद्यत होता है. कई-कई रचनाकार वाह-वाही के उद्घोष में क्षीण होते चले जाते हैं और उनकी कविता की सार्थक दीखती आवाज़ तुती की निहायत कमज़ोर आवाज़ भर रह जाती है. और एक समय कविता अकविता बन साहित्य के मंच पर असहाय हो जाती है.

आपका बार-बार वाह-वाहियों के उद्घोष को नकारना आश्वस्त करता है .. .

सादर

Comment by Albela Khatri on June 18, 2012 at 11:47pm

सम्मान्य  सौरभ जी,
मेरा  मानना ये है कि  शब्दों का जोड़ तोड़  और उन्हें फिट कर देना  कविता नहीं है  और न ही  वर्ण, स्वर अथवा मात्राओं के नियम में रह कर  शब्द सजाना कविता है .
कविता की आत्मा है  विचार, संवेदना  और  आनन्दभीना लोक  कल्याण का भाव...इनका आभाव हो तो  कविता का जिस्म भले बन जाये, पर जीवन्त नहीं होगी ....लेकिन ये है  तो जिस्म भले कमज़ोर हो, पर ज़िन्दा होगी कविता

आदरणीय  मेरी मान्यता गलत हो तो आप डंडा मार सकते हैं
___आपकी सराहना से मुझे३ बड़ा स्वम्बल मिला है .

आभार!   बहुत  बहुत आभार ...........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 18, 2012 at 11:17pm

बात की बात में उर्ध्वकारी वैचारिकता के तंतुओं की पकड़ रखना व्यंग्य लेखन की विशेषता होती है. आपने इस हास्य ग़ज़ल के सभी अश’आर में अंतर्धारा को पूरा बहाव दे रखा है, आदरणीय अलबेलाजी.  मेरे कहे का खुला अनुमोदन आपका निम्नलिखित शेर कर रहा है -

बाप से बढ़ कर कौन सखा हो सकता है
माँ से बढ़ कर कौन सखी है बाबाजी

इन पंक्तियों में सन्निहित उन्नत विचारों के लिये आपको मेरी सादर बधाइयाँ.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 5:04pm

मोगाम्बो भी खुश हुआ. आदरणीय अलबेला जी, सादर 

Comment by Albela Khatri on June 17, 2012 at 4:37pm

तब तो हमारी  संवेदना  एक जैसी है ....ख़ूब निभेगी प्रदीप जी.....हा हा हा हा
बाबाजी ख़ुश हुए ,,,,,,,,,

Comment by Albela Khatri on June 17, 2012 at 4:32pm

धन्यवाद  नीलांश जी......
आभार

Comment by Albela Khatri on June 17, 2012 at 4:27pm

भाई कुमार गौरव अजीतेंदु जी,
सच कहने में डरना क्यों ?
____जो होगा निपट लेंगे...हा हा हा हा
___धन्यवाद आपकी टिपण्णी के लिए.........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service