तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी
आओ, मिल कर देश चबायें बाबाजी
राजनीति में किसी तरह घुस जाएँ तो
जीवन भर आनन्द मनायें बाबाजी
चोर - चोर मौसेरे भाई हैं तो फिर
इक दूजे के काम में आयें बाबाजी
क्लब में चाहे मुन्नी को बदनाम करें
मंच पे जन गण मन ही गायें बाबाजी
सबकुछ खोया, तब फिल्मों में आई हैं
ये सुन्दर - सुन्दर बालायें बाबाजी
घर से ज़्यादा तपन है बाहर सड़कों पर
कहाँ पे जा कर राहत पायें बाबाजी
पेट की खातिर दिन भर दौड़े 'अलबेला'
जी करता है, अब सो जायें बाबाजी
JAI HIND !
Comment
आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर अभिवादन
आपकी रचना देख कर मैं आपकी नक़ल कर रहा हूँ. एक फिर लिख दी है. अनुमोदन पोस्ट को मिलेगा तो ठीक नहीं तो आपकी वाल पर पोस्ट कर दूंगा .रचना के बारे में क्या कहना अनुकरणीय है मेरे लिए.
बधाई.
तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी
आओ, मिल कर देश चबायें बाबाजी
सही कहा बड़े भैया.....
vaah vaah ...sateek kataksh se bhari rachna bahut pasand aai.
aadarniya albela ji ,sunder rachna
आपका हार्दिक आभार डॉ 'सूरज' जी.......
सादर
धन्यवाद भाई संदीप कुमार पटेल जी.......
आभार
bahut sundar aapki rachnayen babaji
lagta hai baar baar gaayen babaji
aapke sur me sur ye milaayen babaji
lage kabhi ki khud ban jaayen babaji
bahur sundar sir ji ......................kya baat hai
अच्छी रचना है अलबेला जी। बहुत बहुत मुबारकबाद !!
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