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ये सुन्दर - सुन्दर बालायें बाबाजी

तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी
आओ,  मिल कर देश चबायें बाबाजी

राजनीति में किसी तरह घुस जाएँ तो
जीवन भर आनन्द मनायें  बाबाजी

चोर - चोर मौसेरे भाई हैं तो फिर
इक दूजे के काम में आयें बाबाजी

क्लब में चाहे मुन्नी को बदनाम करें
मंच पे जन गण मन ही गायें बाबाजी

सबकुछ  खोया, तब फिल्मों में आई हैं
ये सुन्दर - सुन्दर बालायें बाबाजी

घर से ज़्यादा तपन है बाहर सड़कों पर
कहाँ पे जा कर राहत पायें बाबाजी

पेट की खातिर दिन भर दौड़े 'अलबेला'
जी करता है, अब सो जायें बाबाजी

JAI HIND !

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 12:57pm

आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर अभिवादन 

आपकी रचना देख कर मैं आपकी नक़ल कर रहा हूँ. एक फिर लिख दी है. अनुमोदन पोस्ट को मिलेगा तो ठीक नहीं तो आपकी वाल पर पोस्ट कर दूंगा .रचना के बारे में क्या कहना अनुकरणीय है मेरे लिए. 

बधाई.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 16, 2012 at 11:38am

तुम भी खाओ, हम भी खायें बाबाजी 
आओ,  मिल कर देश चबायें बाबाजी 

सही कहा बड़े भैया.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2012 at 10:46am

vaah vaah ...sateek kataksh se bhari rachna bahut pasand aai.

Comment by Nilansh on June 16, 2012 at 10:09am

aadarniya albela ji ,sunder rachna

Comment by Albela Khatri on June 16, 2012 at 9:39am

आपका हार्दिक आभार डॉ 'सूरज' जी.......
सादर

Comment by Albela Khatri on June 16, 2012 at 8:26am

धन्यवाद  भाई  संदीप कुमार पटेल जी.......
आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 16, 2012 at 8:18am

bahut sundar aapki rachnayen babaji

lagta hai baar baar gaayen babaji

aapke sur me sur ye milaayen babaji

lage kabhi ki khud ban jaayen babaji

bahur sundar sir ji ......................kya baat hai

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 16, 2012 at 12:16am

अच्छी रचना है अलबेला जी। बहुत बहुत मुबारकबाद !!

कृपया ध्यान दे...

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