सानिध्य में सुदूर हर बात से मजबूर
सजग चिंतित, विराग अनुराग !
प्रतिकूल मंचन, मुलाक़ात सज्जन
फिर वहीँ आचार विचार संचन !
दिशाहीन नाव, अथाह सागर
मस्ती तूफ़ान ज्यों यादगार मगर !
अद्वैत, असहाय , निरुपाय
कुमकुम की कली तेज धुप अलसाय !
मधुर मिलन फिर वही चिंतन
अनुराग अपार तेजधार बहाव !
धूमिल क्षितिज , कलरव
अभिनव राग हज़ार बार !
हरित निष्प्राण मंद वायु यार
व्यक्त-अव्यक्त निशावार हार !
उधेड़बुन मनलय कोपल किसलय
द्वैत-अद्वैत तलाश अविनाश !
मनरत, कर्मरत अवकाश निवास
विहार-विचरण हार- बगार !
फिर वही द्वंद्व नभ तारे धरा
जल, थल, नभ हर जीव हरा !
कहाँ शक्ति संचित ज्वाला
अजन्मी, अव्यक्त विदेह बाला !!
Comment
सुन्दर उत्कृष्ट शब्दों के संयोजन से सुसज्जित रचना
वाह वाह राज तोमर जी...........
ज़बरदस्त काव्य
सुन्दर शब्दावली से सुसज्जित मनोरम रचना
बधाई !
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