हँसता हुआ गुलाब बोला
देखो मैं कितना सुन्दर हूँ !
कितना गोरा रंग मेरा ,
खुशबू का मैं घर हूँ !
कितना कोमल अंग मेरा ,
सहलाना तो छोडो !
पंखुडियाँ झड जाएँगी
मुझको कभी न तोडो !
शाहों अमीरों का शान बना, पुष्पों का सरताज हूँ
यूँ बहुत पुराना राजा हूँ मैं फिर भी नया नया हूँ !
खाद रसों को चूस चूस कर इतना बड़ा हुआ हूँ
ओढ़ भेड़ की खाल को मैं भेडिया बना खड़ा हूँ !
राधा के होंठों से मैं लाली चुरा लाया हूँ
राम के सिलीमुख को शूल बना बैठा हूँ !
इंद्र के सिंहासन पर बैठा दंड दिया करता हूँ
रावण भी शर्मा जाये वो कर्म किया करता हूँ !
उड़ने वालों के नापाक इरादों को बर्बाद किया करता हूँ
सरस्वती को कैद कर शैतानों को आबाद किया करता हूँ !
आने पर मेरी ड्योढी में सिंह घास चबा जाता है
इश्वर मेरे प्रासाद में हर रोज घंटा बजाता है !
रस नाम मात्र नहीं, बस आठोंगाँठ देह मेरी
गजरे पे लगा निकल जाये मुझे प्रेयसी तेरी !
चूमकर नेहरु कहा वाह क्या सुन्दर, खुदा
सृष्टा ने दे दिया क्या इसे सारी सुधा !
खुशी में मैं डूबा उतराया,
पता नहीं क्या क्या चुराया !
सारे मनीषी गुज़र गए,
उठा उठा के रखते गए !
देख मुझे वक्र मूर्त
सारे के सारे धूर्त
पुष्पक विमान लौटा दिए
फंदे पर लटकी जिंदगी जिए
राजनीति, धर्मनीति, और समाजनीति
सभी का मुझसे सृजन हुआ
मैंने जो कहा वही सभी का कथन हुआ !
राम ने रावण को मारा,
कृष्ण ने कंस को मारा
मैंने सारे जहाँ को मारा
हो गया मदहोश साला !
थोड़ी सी खुशबू जैसे-
कनक का प्याला !
तू लट्टू हुआ रूपसी पर, मैंने उसी को रिझाया
देख मुझे, मैं खोया नहीं बस पाया ही पाया !
कुछ शैतानों को सूझी क्या, लोकतंत्र का नारा लगाए
समाजवाद , साम्यवाद में ऐसे बौराए
क्या पतन मेरा हुआ.?
आँख में पट्टी बांध राजतंत्र ही फैलाया
अरे देख तो, इंसानों को भी घास चराया !
मेहरूनिशा ने निचोड़ा इत्र ऐसा बनाया
दुनिया में छत्र मेरा ही सजाया
बच्चे से बूढ़े तक को मैंने ही नचाया
अरे मेरा क्या बिगड़ा ?
मैंने ही सबको बसाया !
महिमा मेरी गाते रहे आदिकवि व्यास,कालिदास सभी
हुकूमत चलती है मेरी,करता हूँ दुनिया में मैं राज अभी !
अर्जुन सा धनुही लिए खड़े हैं सब शूल मेरे
वो करते हैं रखवाली हर फूल की मेरे !
मैं पुष्पराज , रूपराज, बलराज चक्रवर्ती महाराज.
पूर्व से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक मेरा ही साम्राज्य !
मैं ही धरा का धर्मवीर, गगन का समदर्शी ,
मैं ही माइक्रोस्कोप मैं ही दूरदर्शी !
मैं ही शब्द, मैं ही कंकड़
छोड़ दे त्रेतायुगी , द्वापरयुगी
मैं ही कलयुगी शंकर !
गीता, बाइबिल और कुरान
सोच सभी मुझसे सुजान
मुझी से सब बह निकले
साहिब,वेश्ता और पुराण !
लोकपाल, दिग्पाल ,इन्द्रपाल
सभी मेरे प्रासाद के द्वारपाल
ये नीला आसमां सारा
सदा से ढाल मेरा
मैं कालजयी, मैं मृत्युजयी
शक्तिजयी जयकार है मेरा !
इशारे पे मेरे दुनिया बनी
सब जी रहे अहसान है मेरा
मैंने मिटाया शान से
सारा अभिमान है मेरा !
यमराज मेरे चरणों पे आ जयगान किया करता है
बृह्मा भी मुझ पर अभिमान किया करता है !
जब तक मैं हूँ ये जहान है
मिला मुझे बृह्मा का अक्षय वरदान है.!!
(अगस्त , ९६)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया अलबेला खत्री साब . :)
waah Raj Tomar ji.........
\umda kavita ke liye badhaai
शुक्रिया श्रीमान सौरभ पाण्डेय सर . :)
एक अच्छी कविताके लिये हार्दिक बधाई स्वीकारें, भाई राज तोमरजी.
भाई ये बात गुलाब को न बताना , बधाई
शुक्रिया योगी जी. इस कविता में गुलाब एक प्रतीक महज़ है. कविता वंशवाद, पूंजीवाद पर है.
मैं ही शब्द, मैं ही कंकड़
छोड़ दे त्रेतायुगी , द्वापरयुगी
मैं ही कलयुगी शंकर !
bahut sundar shabd ! sambhavatah gulab ke sandarbh mein itane khoobsurat shabd aur itna vistrat chitran pahle kabhi padhne ko nahi mila ! badhai
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