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बहुत सुन्दर प्रकृति के साथ इन्साफ करती दोहावली
झरना झर-झर बह चले, मतवाली ले चाल .
हरियाली जितनी बढ़े, उन्नत हो परिवेश।
दोहे सुन्दर दे रहे, सुन्दरतम संदेश।
सुन्दर दोहों के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय डा प्राची जी...
आदरणीया प्राची जी ,
हार्दिक आभार जगन्नाथ झा जी
आदरणीय अलबेला खत्री जी, हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय सुरेन्द्र शुक्ला जी, इस रचना को सराहने हेतु आभार.
वाह वाह............. सुंदर प्रस्तुति पर बधाई
वाह वाह !
सम्मान्य डॉ प्राची सिंह जी.....वाह शब्द बहुत छोटा लग रहा है आपकी प्रशन्सा के लिए, परन्तु इस बड़ी से बड़ी प्रशन्सा भी केवल इस एक शब्द "वाह" का ही विस्तार होगी......इसलिए बार बार 'वाह' कहने का ही मन है.
आपकी दोहावली ने आनंद दिया ......वैसे कहना मत किसी से..............जब हम प्रकृति की महत्ता पर रचना करते हैं तो यों लगता है कि हम अबोध शिशु हैं और अपनी तोतली वाणी से स्वयं की माँ के ममतामय स्वरूप की महिमा का वर्णन कर रहे हैं
वाह ! इन पंक्तियों का तो कहना ही क्या .........
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