For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३४

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)              

वो रिश्ता भूल आया हूँ............

 

जिस पुरानी कदीम सी जगह से

जन्मों का रिश्ता महसूस करता आया हूँ

उसी, हरे पानी की झील से लगी सीढ़ियों पे

एक रिश्ता भूल आया हूँ अपना.........

एक नामालूम अन्जान सा

बारिश की रात में

बादलों के पीछे छिपे चाँद सा रिश्ता

जिसे आँखों में भरकर अब तक ढोता रहा था

जागते सोते, हर मोड़ पे जिसे

साथ रखता था उम्मीद की तहों में

वो रिश्ता भूल आया हूँ

उन कदीम आहनी ज़ीनों पे

जिनपे हम बैठे रहे थे देर तलक

पानी में डूबते उतराते सूरज को तकते हुए

ये समझने की कोशिश में शायद

कि वक़्त हर लम्हा

कुछ ऐसी ही डूबती उतराती

अजनबी शक्लों में

हमारी चाहतों की तश्कील क्यों करता है?

 

उन्हीं क़दीम आहनी ज़ीनों पे

और भी कुछ छोड़ आया हूँ पीछे

शायद मेरी पलकों पे टिकी एक सुब्ह

जिसकी शबनमी आँच का हुस्न

अभी गया नहीं था

या ओस की चादर लपेटे

जाड़े की एक रात

जो चाँद के निकलने तक

सो न सकी थी तन्हा

या मेरी अना का एक टुकड़ा

जिसे रखा था बचा के अब तक तुम्हारे लिए

वो रिश्ता भूल आया हूँ

 

© राज़ नवादवी

सोशल वर्क हॉस्टल, नई दिल्ली

(०२/०३/१९९३)

Views: 382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 9:45pm

मेरे आत्मीय सौरभ जी, आपके शब्दों को पढ़कर बेहद खुशी हुई, जिसे बयान नहीं कर सकता. आपकी साहित्यापरकता और मर्मज्ञता से थोड़ा वाकिफ ज़रूर हूँ और इसलिए आपके प्रेरणास्पद शब्द मेरे लिए किसी तमगे की तरह हैं. दिल से लगा के रखूंगा. 

आपका ही 
राज़ नवादवी.
Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 9:40pm

मेरे प्रिय अभिनव जी, आपके स्नेह का सदैव आभारी रहूंगा. मेरे जज़्बात ने आपके दिल में  कहीं  आपके माजी के सोये नक्श को जगा दिया- मैं खुश होऊं या अफ़सोस करूँ समझ नहीं आता. यादें अच्छी तो लगती हैं मगर दर्द भी जगा जाती हैं. 

बात उन्वान की- सच कहूँ तो यही सच है. मेरी क्या बिसात है, सदियों से लिख रहा रहा हूँ, मगर पोशीदगी के परदे में. यह उन्वान मेरे दिल से निकला और मैंने कहा यही मेरा तोहफा है. आपके बाधाई  के शब्दों की कीमत कभी नहीं चुका सकता, बस शुक्रिया ही कह सकता हूँ. हाँ, ये दिल और इमानदारी से कहा गया गया है.
आपका राज़ नवादवी  
Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 9:30pm

आदरणीय अविनाश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद 

आपका राज़ नवादवी! 
Comment by AVINASH S BAGDE on July 1, 2012 at 5:22pm

जाड़े की एक रात

जो चाँद के निकलने तक

सो न सकी थी तन्हा

या मेरी अना का एक टुकड़ा

जिसे रखा था बचा के अब तक तुम्हारे लिए

वो रिश्ता भूल आया हूँ

-------------------------------

राज़ नवदवी जी,wah!

 

Comment by Abhinav Arun on July 1, 2012 at 2:11pm

आदरणीय श्री राज़ जी ! हम सभी अपरिचित  ही हैं इस राह में | पर हमारी रचनाएँ और उनकी धार एक दूसरे से साहित्यिक प्रेम की डोर से बांधती है | ओ बी ओ के सूत्र में आप भी बांध गए हार्दिक स्वागत आपका | आपकी रचनाओं को पढ़ते हुए खुद अपने बीते दिनों को पुनः जीने का एहसास होता है | यही आपकी कलम की ताकत और उसकी सफलता है | बहुत बहुत बधाई | " एक अपरिचित  रचनाकार " श्रृंखला का उनवान कुछ खटकता है ख़ास कर जब यह स्वयं के लिए हो | विचार कीजियेगा यह सलाह मात्र है | यह खुला मंच है | आपको प्रसन्नता और संतुष्टि मिलेगी | सादर साधुवाद !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2012 at 1:21pm

भाई राज़ नवदवी जी,  इस मंच पर आपकी कुछ रचनाएँ हमने देखीं हैं. संभवतः अपनी बातों से पहली बार प्रस्तुत हो रहा हूँ.

रुमानी लिहाज में कुछ कहना उतना सरल नहीं होता जितना दीखता है या समझा जाता है. आपकी प्रस्तुत कविता मुलायम सी रचना है जिसमें आत्मपरकता कायदे से प्रस्तुत हुई है. इस हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ. 

एक सफल प्रस्तुति के लिये बधाइयाँ स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service