For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो बच्चा
बीनता कचरा
कूड़े के ढेर से
लादे पीठ पर बोरी;
फटी निकर में
बदन उघारे,
सूखे-भूरे बाल
बेतरतीब,
रुखी त्वचा
सनी धूल-मिटटी से,
पतली उँगलियाँ
निकला पेट;
भिनभिनाती मक्खियाँ
घूमते आवारा कुत्ते
सबके बीच
मशगूल अपने काम में,
कोई घृणा नहीं
कोई उद्वेग नहीं
चित्त शांत
निर्विचार, स्थिर;
कदाचित
मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा
रोज का किस्सा,
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में
चल पड़ता है
आगे,
अपने नित्य के
अनजाने या फिर
अंतहीन सफ़र पर,
शायद
कल फिर आना हो
चुनने
कुछ छूटे टुकड़े
जिंदगी के|

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 2, 2012 at 11:06pm

मान लिया खुद को भी
उसी का एक हिस्सा 
रोज का किस्सा,
चीजें अपने मतलब की
डाल बोरी में
चल पड़ता है
आगे,

अजीतेंदु जी मार्मिक ..व्यथा ऐसे दृश्य देख मन में हलचल मचा देती है काश ये दशा अपने हिंद से भाग जाए .सरकार और हमारे धनी लोग कुछ जाग जाएँ ...बहुत प्यारी रचना 
भ्रमर ५ 

 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 11:00pm

आदरणीया राजेश जी, बिलकुल सही कहा आपने कि ऐसे बच्चे जूठन खाने को भी विवश हो जाते हैं| ऐसी सामाजिक असमानता पर मन आक्रोश से भर उठता है| उन सरकारों पर गुस्सा आता है जो वोट तो ले जातीं हैं पर बदले में कुछ नहीं देती, यहाँ तक की मौलिक अधिकार भी नहीं......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2012 at 9:08pm

निर्दयी प्रारब्ध को निरुपाय समेटने को विवश कोई जीवन सापेक्ष रूप से थिर-सा भले दीखता हो उसकी अंतर्धार में अवश्य ही अकथ आलोड़न होता है.  कुमार गौरव अजीतेन्दु जी ने शब्द-चित्र के माध्यम से समाज की विड़ंबना को उकेरने का प्रयास किया है. इस सुप्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2012 at 8:26pm

गरीबी का जबरदस्त चित्रण किया है आपने | मैंने तो कई बार पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन  के बाहर चाय की दुकान के सामने कचरा इकठ्ठा करने वालों को डस्टबिन में से लोगों की झूठन को खाते हुए देखा है ह्रदय विचलित हो उठता  है इस देश की हालत को देख कर|

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 4:40pm
आदरणीय हरीश सर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। बच्चोँ का कचरा चुनने जैसा काम करना किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक है।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 4:37pm
आदरणीया रेखा जी, धन्यवाद। सरकारी आँकड़ोँ और वास्तविक स्थिति का फर्क तो ऐसे बच्चोँ को ही देख के पता चल जाता है किन्तु आँकड़ेबाजी का खेल बंद ही नहीँ होता।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 2, 2012 at 4:33pm
आदरणीय उमाशंकर जी, आपका हार्दिक आभार। हर जगह ऐसे बच्चे दिख ही जाते हैँ जो कचरा बीनने जैसा कार्य करने पर मजबूर होते हैँ। जिस देश मेँ आजादी के 65 साल बाद भी ये हाल है वो अपने विकसित होने का दावा कैसे कर सकता है।
Comment by Harish Bhatt on July 2, 2012 at 1:28pm
गौरव जी नमस्‍ते
दिल को छू जाने वाली रचना के लिए बधाई
Comment by Rekha Joshi on July 2, 2012 at 1:18pm

गौरव जी ,

शायद
कल फिर आना हो
चुनने
कुछ छूटे टुकड़े
जिंदगी के|  मार्मिक और अच्छी प्रस्तुतिपर बधाई 
Comment by UMASHANKER MISHRA on July 2, 2012 at 12:02pm

संवेदनसील मसला उठाया है बहुत ही मार्मिक दृश्यों के साथ कुमार गौरव जी आपको बहुत बहुत बधाई अत्यंत सुन्दर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
3 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service