सदा हिजाब में रहते हो माज़रा क्या है?
बड़े रुबाब में रहते हो माज़रा क्या है?
बना दिया आखिर मुझे गुलशन पसंद....
हरेक गुलाब में रहते हो माज़रा क्या है?
हुदूद कोई बना लो हुस्न-ए-शबनम की....
खुले शबाब में रहते हो माज़रा क्या है?
कभी दुआ कभी मुराद में महसूस किया....
कभी अज़ाब में रहते हो माज़रा क्या है?
शकाफत भरा है तुम्हारा कोहिनूर बदन....
हया-ओ-आब में रहते हो माज़रा क्या है?
जबसे दीदार किया नींद है नसीब कहा....
क्यों मेरे ख्वाब में रहते हो माज़रा क्या है?
Comment
अत्यंत सुंदर ...
वाह बहुत खूब
एक शरारत भरी नटखट सी ग़ज़ल ---बहुत सुन्दर
जबसे दीदार किया नींद है नसीब कहा....
क्यों मेरे ख्वाब में रहते हो माज़रा क्या है?
बहुत खूब
राज जी ,
बड़ी ही बेहतरीन गजल सर जी। वाह आखिर माजरा क्या है।
बधाई हो।
जबसे दीदार किया नींद है नसीब कहा....
क्यों मेरे ख्वाब में रहते हो माज़रा क्या है?..बढ़िया गज़ल है. राज भाई साहब ये सात लाजवाब प्रश्न माज़रा क्या है ?
माज़रे में बढ़िया शरारत भरी है .माज़रा क्या है ?
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