उठता यूँ हिजाब देख के
उनको ही तकते रह गए
काला तिल रुखसार पर
लेता जाँ है जाने जिगर
दिल पे है कैसा ये असर
न रही दुनिया की खबर
रंगत औ शबाब देख के
उनको ही तकते रह गए
लगती है जैसे गुल बदन
उठती है मीठी सी चुभन
धरती है या है वो गगन
सीने में चाहत की अगन
होंठों में गुलाब देख के
उनको की तकते रह गए
गहरा वो कोई सागर
या कल कल सा कोई निर्झर
भिगोये नैन की गागर
मान बैठा उसे दिलबर
आँखों में शराब देख के
उनको ही तकते रह गए
वो खिलता सा कोई कँवल
बात उसकी लगे ग़ज़ल
हँसे तो दिल में हो हलचल
ये दिल जाए मचल मचल
बातों का हिसाब देख के
उनको ही तकते रह गए
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीया रेखा जी आपको रचना पसंद आई और आपने इसको सराहा इसके लिए आपका बहुत बहुत धनयवाद और सादर आभार
संदीप जी ,बहुत ही प्यारी सी रचना ,हार्दिक बधाई
आदरणीया डॉ साहिबा आपने गीत पढ़ा और मेरा उत्साहवर्धन किया इसके लिए मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
आदरणीय अलबेला सर जी
मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका ह्रदय की गहराई से धन्यवाद और सादर आभार
अपना स्नेह मुझ पर बनाये रहिये
बहुत सुन्दर गीत. हार्दिक बधाई
बड़ा रंगतदार गीत रचा है प्रभु !
आनंद आया
लगती है जैसे गुल बदन
उठती है मीठी सी चुभन
धरती है या है वो गगन
सीने में चाहत की अगन
होंठों में गुलाब देख के
उनको की तकते रह गए
वाह संदीप पटेल जी.........बहुत खूब !
बधाई !
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