For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरी याद आती है माँ

दिल खोलकर सखियों में मेरा ज़िक्र करती थी,
ज़रा सी देर क्या हो जाए बहुत फिक्र करती थी.........

तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......
अश्क आँखों में जब आता है, दर्द जब मुझको सताता है,
जब उदास हो जाता है मन, जब बढ़ जाती है उलझन,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

जब सुबह कोई समय पर उठाता नहीं, चाय से भरा प्याला दिखाता नहीं,
जब सर पे कोई हाँथ रख कहता नहीं, बेटा देर हो जाएगी उठ जा,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

जब आवाज नहीं आती कानो में, कि ज़रा ध्यान से गाडी चलाना,
दफ्तर पहुँच कर मुझे तुम बताना, समय पर बेटा खाना है, खाना,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

लौटकर शाम को जब घर आता हूँ, खाली कुर्सी पर जब तू दिखती नहीं,
आज का दिन कैसा गुजरा, जब न पूंछे कोई.
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

देर हो या सबेर कोई रोकता नहीं, ग्लास भर पानी को टोकता नहीं,
सर में दर्द जब-जब चढ़ जाता है, हद से ज्यादा जो ये बढ़ जाता है,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

दोस्तों के घर मैं जब जाता हूँ, अपनी माँ से मुझे जब वो मिलवाते हैं,
जब - जब पूंछे है वो घर में कैसे है सब.
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

बे-रौनक पापा का जब-जब चेहरा दिखा, दर्द उनके भी चेहरे पर था लिखा,
बात दिल कि जब पापा छुपाते हैं माँ, समय कैसे तेरे बिन बिताते हैं माँ,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

नज़रें जब दिवार पर चढ़कर आपकी मुस्कुराती तस्वीर देखती हैं,
आसमान में जब सारे तारे जगमगा के आपस में बातें करते हैं,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

चाँद कि किरणे जब खिड़की पर दस्तक देती हैं,
और चंदा मामा कि कहानी याद आती है,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

आसमां जब धरती कि याद में आंशू बहाता है,
समंदर जब किनारों को डुबो जाता है,
सबेरा जब सूरज कि बिंदिया सजाता है,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

घर में बस्ती ये ख़ामोशी, और जब-२ घर आये मौसी,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

मेरे जीवन कि अनमोल सबसे चीज़ ले गया,
मेरी माँ को मुझसे छीन डायबिटीज़ ले गया....

Views: 1126

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 15, 2012 at 2:49pm

आदरणीया प्राची जी, आपका स्नेह ओ.बी.ओ. के जरिये प्राप्त हुआ. ह्रदय को अपार प्रसन्ता हुई. बहुत-बहुत शुक्रिया.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 14, 2012 at 7:08pm
प्रिय अरुण शर्मा जी,
बहुत खूबसूरत, भावाभिव्यक्ति...
आपने अपनी माँ के श्री चरणों में अपनी अनमोल भाव श्रद्धांजलि अर्पित कर के, हर एक बच्चे के और हर एक माँ के मन को भी गहराई से छू लिया है....
इन भावों के लिए आपका अभिनन्दन और आपकी माताजी को हार्दिक श्रद्धांजली.
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 11:13am

मैं ओ.बी.ओ. का आभारी हूँ. यहाँ मुझे इतने अनमोल रिश्ते मिले हैं, इतना स्नेह मिला है, आप सबसे ये नाता यूँ ही बंधा रहे.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 11:11am

आदरणीय डॉ. बाली जी एवं सतीश जी. बहुत -२ शुक्रिय.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 11:08am

भ्राताश्री अम्बरीश जी,
आपका स्नेह मिला प्रेम सहित स्वीकार है. ओ.बी.ओ. का बहुत-२ शुक्रिया की मुझे एक बड़ा भाई मिल गया है.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 11:07am

आदरणीय अलबेला जी. आपका साथ और स्नेह मिला और क्या चाहिए. तहे दिल से शुक्रिया.

Comment by satish mapatpuri on July 14, 2012 at 2:38am

बहुत ही पावन एवं अनुकरणीय ख्याल ....... अरुण जी , माता के ही चरणों में तो स्वर्ग होता है ....... माता के आशीष से आप यशस्वी हों ..... इस खुबसूरत रचना के लिए बधाई

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 13, 2012 at 11:49pm

अरुण जी बहुत मर्मस्पर्शी और भावनात्मक रचना है। मैं के प्रति अपार प्रेम दरसाती इस रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 13, 2012 at 11:26pm

बे-रौनक पापा का जब-जब चेहरा दिखा, दर्द उनके भी चेहरे पर था लिखा, 
बात दिल कि जब पापा छुपाते हैं माँ, समय कैसे तेरे बिन बिताते हैं माँ,
तेरी याद आती है माँ, हाँ सच है माँ, बहुत याद आती है माँ......

प्रिय अनंत जी मार्मिक रचना ह्रदय को छू लेने वाली ...काश हमारी भावी पीढ़ी को माँ और पिताश्री की कदर सदा बनी रहे 

भ्रमर ५ 

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 13, 2012 at 7:30pm

प्रिय अनुज अरुण,

माँ के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम व विनम्र श्रद्धांजलि !

खासतौर पर माँ के लिए .....

ये ममता से भरी नज़रें तुम्हीं से आज चाहत है

अभी तक है वही बचपन नहीं छूटी शरारत है

सदा फूलों सा रक्खा है बचा कर हमको काँटों से

तेरी बगिया के पौधे हम तेरी हम पर इनायत है .......

माँ का आशीष आप पर लगातार बरसता रहे .......सस्नेह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
19 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service