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'कोख' को बचाने को ...भाग रही औरतें

कोख को बचाने को भाग रही औरतें 

------------------------------------------

ये कैसा अत्याचार है 

'कोख' पे प्रहार है 

कोख को बचाने को 

भाग रही औरतें 

दानवों का राज या 

पूतना का ठाठ  है 

कंस राज आ गया क्या ?

फूटे अपने भाग है ..

रो रही औरतें 

--------------------

उत्तर , मध्य , बिहार  से 

'जींद' हरियाणा चलीं 

दर्द से कराह रोयीं 

आज धरती है हिली 

भ्रूण हत्या 'क़त्ल' है 

'इन्साफ' मांगें औरतें ....

-------------------------------

जाग जाओ औरतें हे !

गाँव क़स्बा है बहुत 

'क्लेश' ना सहना बहन हे 

मिल हरा दो तुम दनुज 

कालिका चंडी बनीं 

फुंफकारती अब  औरतें ...

----------------------------------

कृष्ण , युधिष्ठिर अरे हे !

हम सभी हैं- ना -मरे ??

मौन रह बलि ना बनो रे !

शब्दों को अपने प्राण दो 

बेटियों को जन जननि हे !

संसार को संवार दो 

तब खिलें ये औरतें 

कोख को बचाने जो 

भाग रहीं औरतें 

---------------------

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' ५ 

१४.७.२०१२

८-८.३८ मध्याह्न 

कुल्लू यच पी 

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 18, 2012 at 11:44pm

प्रिय संदीप जी रचना नारी कि वेदना के साथ साथ उनके साहसिक कदम को नमन करती आप को भायी सुन ख़ुशी हुयी आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 18, 2012 at 11:43pm

प्रिय आशीष जी रचना उत्कृष्ट रही और आज के हालत दर्शा सकी सुन ख़ुशी हुयी आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 18, 2012 at 11:42pm

स्त्रियों को ही अब मोर्चा संभालना होगा बहुत अच्छा सन्देश 

आदरणीया राजेश कुमारी जी प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार आइये अपनी आवाज यों ही बुलंद करते रहें 

भ्रमर ५ 

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 18, 2012 at 2:46pm

सच कहा इसीलिए उन्हें कभी कभी जीवन श्राप के सम्द्रश्य लगता है
बहुत सुन्दर रचना नारी की वेदना मुखरित करती हुई
बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए

Comment by आशीष यादव on July 18, 2012 at 10:32am

उत्कष्ट रचना। सामयिक।
बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 18, 2012 at 9:58am

बहुत सुघड़ता से आज के समाज के दुष्कृत्य को उजागर किया है रचना में स्त्रियों को ही अब मोर्चा संभालना होगा बहुत अच्छा सन्देश देती रचना बधाई भ्रमर जी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 17, 2012 at 11:52pm

प्रिय वाहिद काशी वासी भाई जी   ...आभार आप का समर्थन हेतु ये बात आप की अक्षरशः सत्य तो है ही की जिनके ऊपर बीतने जा रही है जो सब जान रही हैं जो झेल रही हैं उन्हें ही आगे आना होगा और वो अब साहस दिखाने भी लगी हैं लेकिन नारी और पुरुष एक दूजे से मिल कर ही पूर्ण होते है इस लिए आइये उन्हें हर तरह का संबल और मनोबल देते रहें 

भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 17, 2012 at 11:49pm

आदरणीया रेखा जी सच कहा आप ने ये साहस भरा कदम तो उन्हें उठाना होगा अपना मुह खोलना होगा आवाज बुलंद करने के लिए हम सब के मुख और हाथ सदैव तत्पर हैं ...आभार 

भ्रमर ५ 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 17, 2012 at 7:38pm

आदरणीय भ्रमर जी!

समाज में उपजी यह कुरीति और इसे मिटाने का उपाय सभी तो आपकी कविता में निहित हैं| इसे दूर करना स्त्रियों के सहयोग के अभाव में संभव नहीं है| सादर राधे-राधे..

Comment by Rekha Joshi on July 17, 2012 at 3:43pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी ,अति सुंदर अभिव्यक्ति ,अपनी कोख को बचने औरतों को ही आगे आना होगा ,बधाई 

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