"क्या कहूँ "
धीरे धीरे चलती पवन
गंभीर हो
चिंतन में डूबे को
समय देख रहे हो
या प्रवाह को महसूस कर रहे हो मेरे
या पदचाप सुन रहे हो
आने वाले समय के
क्यूँ आज चुप हो
जाने क्या क्या कहती है
चुपके से कानो में
धीरे धीरे चलती पवन
मन अधीर हो उठा है
क्या कहूँ उससे
क्या कहूँ
प्रेम अब छल हो गया
कृष्ण ये क्या सिखा गए
हे छलिया कौन दोषी
तुम तो बुद्धिमान थे
ये हर कोई तो सुबुद्ध नहीं है
क्या कहूँ
झूठ की बांह पकडे खड़ा है सत्य
हाँ वही सत्य जो शिव है सुन्दर है
तुम तो जानते हो सत्य
मंदिरों में अतिविशिष्ट दर्शन दे रहे हैं भगवान्
इससे शास्वत और सुन्दर झूठ
या यूँ कहूँ सत्य कहाँ मिलेगा
क्या कहूँ
पथ भ्रष्ट नर नारी
योवन को कर्म वेदी में झोंके
क्या क्या अनुष्ठान कर रहे हैं
न जाने किसे प्रसन्न करने की होड़ है
उनके तप का उपवास का दृश्य विशिष्ट है
पहले कम फिर और कम फिर इतने कम की
दूसरा साधक साधना से पथ भ्रष्ट हो जाए
आखिर ये वस्त्रों का उपवास क्यूँ
क्या कहूँ
स्तब्ध हूँ देख देख के सकल समाज को
क्या कहूँ
के इन श्वेत वस्त्रों से जो तन ढंका है
वो अमावश से भी भीषण काला ह्रदय लिए घूमता है
उसने दया की भावना छोड़ दी है
दीनों को प्रताड़ित करने की कसम खा रखी है
क्या कहूँ
कसमसाहट होती है
क्या कहूँ
जन रक्षा तो छोडिये देश रक्षा में भी होते हैं सौदे
सौदे अर्थात खरीद फरोख्त
व्याकुल हो उठता है मन
आतंकियों को सहेज के
अपने ही खातिर करते हैं
जैसे उनकी समाधि
चन्द्र शेखर आज़ाद के बगल में बनवाने वाले हो
आखिर क्या कहें
जब शहीदों को भी कह देते हैं आतंकी
क्या कहें
जब आगे बढ़ने के होड़ में
भुलाए जा रहे हों रिश्ते-नाते
कौन दोस्त वो जो
पल पल मतलब निकालता है
या कौन भाई जिसे आपकी जमीं से एक टुकड़ा चाहिए ज्यादा
कभी बड़े होने का उन्माद कभी छोटे होने का क्षोभ
क्या कहूँ
ऐ पवन तू ऐसे ही चलती है क्या
तू भी तो कभी कभी शोर करती है
तब मैं तो नहीं पूछता क्या हुआ
क्या तुम भी होड़ लगाते हो
धरती से आसमान से
या जल से
और यदि लगाते हो
तो बंद करो इसे
देखो दुनिया कितनी हसीं है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
सटीक भाव आज के समाज को दर्पण दिखाती रचना ,बहुत बार इस्तेमाल किये गए शब्द क्या कहूँ कंहीं कहीं बोझिल लगते हैं
आदरणीय और प्रिय अलबेला जी ,भाई उमाशंकर मिश्र जी और प्रिय संदीप जी आप सब को चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक १५ में प्रथम द्वितीय तृतीय स्थान ले विजयी रहने पर हार्दिक और लख लख बधाइयाँ
आखिर क्या कहें
जब शहीदों को भी कह देते हैं आतंकी
क्या कहें
जब आगे बढ़ने के होड़ में
भुलाए जा रहे हों रिश्ते-नाते
कौन दोस्त वो जो
पल पल मतलब निकालता है
प्रिय संदीप जी अच्छे भाव और सन्देश लिए रचना ..जमाना इतनी तेजी से दौड़ रहा है लोग गिरते जा रहे हैं कुचले जा रहे हैं कुचलते जा रहे हैं काश धैर्य रखें दिल थामे स्व को देखें
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