चल चंदा उस ओर,
जहां नहाती प्रिया सुन्दरी थामें आंचल कोर ।
स्वच्छ चांदनी छटा दिखाना,
भूलूं यदि तो राह दिखाना।
विस्मृत हो जाये तन सुध तो,
देना तन झकझोर.........................।
मस्त बसंती हवा बहाना,
उसको प्रिय का पता बताना।
हवा तनिक भूले पथ जो,
कर देना उस ओर........................।
देख निशा गहराती जाती,
बुझती लौ घटती रे बाती।
लौ तनिक तेज करना,
भरना सुखद अजोर....................।
सनी नीर से लता माधवी,
यौवन पूर्ण प्रिया साधवी।
उसके बाल-व्यूह में उलझा,
अभिमन्यु-नयन किशोर............।
Comment
aadarniya saurabh sir, maine jis tarah se geet gaya tha waise hi maatrao ki ginti kar li. galti ke liye kshma prarthi hu. geet ka gaan karte samay kuchh shabdo ko atirikt jod liya tha aur unhe bhi gin liya tha. aapne jo ginti ki wo bilkul sahi hai.
भाई विंध्येश्वरीजी, अपने गीत में सकारात्मक बदलाव करने और मेरे कहे का मान रखने के लिये आपके प्रति हृदय से धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ. गीत में कैसा निखार आया है इसका आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं. मनस और हृदय दोनों को मुग्ध कर रही है रचना की प्रत्येक पंक्ति. भाव-दशा अति उन्नत तो है ही. हृदय से शुभकामनाएँ.
आप तीस-चालीस के दशक के कवियों को पढ़े तो मालूम होगा कि इस शिल्प में भरपूर कविताएँ आया करती थीं. महादेवी, रामेश्वर शुक्ल अंचल आदि ने तो खूब लिखा है. बच्चन की पूरी ’निशा-निमंत्रण’ इसी शिल्प में है, जिसमें 100 से अधिक कविताएँ हैं. अमूमन इस शिल्प में मुखड़े की पहली पंक्ति या तो चौदह (14) या सोलह (16) मात्राओं की होती है. और मुखड़े की आधार-पंक्ति क्रमशः अट्ठाइस (28) या बत्तीस (32) मात्राओं की होती है. तदनुरूप अंतराओं की पंक्तियाँ भी होती हैं.
इस लिहाज से एक बात और कहना चाहूँगा. आपकी प्रस्तुत कविता में आपके मुखड़े की प्रथम पंक्ति भी सोलह (16) मात्रा की तथा इसकी आधार-पंक्ति बत्तीस (32) मात्राओं की होनी चाहिये थी. वैसे कवि को इसका अधिकार है कि इस शिल्प में मूल मात्रा क्या रखे. लेकिन उसी के अनुसार अंतराओं की पंक्तियाँ भी होंनी होती हैं.
आपकी प्रस्तुत कविता को उपरोक्त कथनानुसार इस शैली में लिख कर तथा गेयता को ध्यान में रखते हुए कुछ पंक्तियों में परिवर्तन कर रहा हूँ. विश्वास है, भाई, मेरा प्रयास सकारात्मकतः स्वीकार होगा.
चल चंदा उस ओर,
जहां नहाती प्रिया सुन्दरी,थामें आंचल कोर
स्वच्छ चाँदनी छटा दिखाना
यदि भूलूं तो राह दिखाना
विस्मृत हो जाये तन सुध तो, देना तन झकझोर..
मस्त बसंती हवा बहाना,
उसको प्रिय का पता बताना
हवा तनिक भी भूले पथ तो कर देना उस ओर
देख निशा गहराती जाती
बुझती लौ, रे, घटती बाती..
सुन, लौ तेज तनिक तो करना, भरना सुखद अँजोर
सनी नीर से लता माधवी
यौवन पूर्ण प्रिया साधवी
व्यूह-बाल में उलझा उसके, दृग अभिमन्यु किशोर.. .
//यौवन पूर्ण प्रिया साधवी" में 15 मात्रायें कैसे होगीं?//
पूर्ण की मात्रा 22 या गुरु गुरु या ऽऽ कैसे होगी ? पूर्ण का ण गुरु या ऽ नहीं होती या उसकी मात्रा 2 नहीं होती.
सधन्यवाद
विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी आपकी रचना "चल चंदा उस ओर"बेहद पसंद आई | जहाँ तक गुरु सौरभ जी की बात है, पारखी नज़रे तो छंटाई करके ही माल उठता है | हां अपने गुर्गो को सिखाता भी है " इससे हम जैसे पाठको को भी कुछ सीखने को मिल जाता है |
गीत "चल चंदा उस ओर" का संशोधित रुप प्रस्तुत है,इस पर पहले अपने गुरु आदरणीय श्री सौरभ जी के हस्ताक्षर ले लूं फिर संशोधित गीत ब्लाग पोस्ट करता हूं-
चल चंदा उस ओर,
जहां नहाती प्रिया सुन्दरी,थामें आंचल कोर।
स्वच्छ चांदनी छटा दिखाना,
भूलूं यदि तो राह दिखाना।
विस्मृत हो जाये तन सुध तो,
देना तन झकझोर................।
मस्त बसंती हवा बहाना,
उसको प्रिय का पता बताना।
यदि हवा तनिक भूले पथ जो,
कर देना उस ओर.................।
देख निशा गहराती जाती,
बुझती लौ घटती रे बाती।
सुन लौ तनिक तेज तो करना,
भरना सुखद अजोर...............।
सनी नीर से लता माधवी,
यौवन पूर्ण प्रिया साधवी।
व्यूह-बाल में उसके उलझा,
दृग अभिमन्यु किशोर............।
आदरणीय गुरु जी से निवेदन है कि-
"यौवन पूर्ण प्रिया साधवी" में 15 मात्रायें कैसे होगीं?क्या इसकी गणना इस तरह नहीं की जायेगी-
यौवन पूर्ण प्रिया साधवी
ऽ । । ऽ ऽ । ऽ ऽ । ऽ =16
सादर प्रतीक्षित
त्रिपाठी जी ,'चल चंदा उस ओर 'ने मन मोह लिया ,अति सुंदर गीत ,बधाई
आशीषभाई, आप स्वयं स्पष्ट रूप से कहें कि आपने प्रस्तुत गीत में कहाँ-कहाँ की मात्राएँ गिनी हैं.
मेरी गिनती के अनुसार -
चल चंदा उस ओर, ---11
जहां नहाती प्रिया सुन्दरी थामें आंचल कोर -- 27
स्वच्छ चांदनी छटा दिखाना, -- 16
भूलूं यदि तो राह दिखाना। --- 16
विस्मृत हो जाये तन सुध तो, --
देना तन झकझोर.........................। -- 27
मस्त बसंती हवा बहाना, -- 16
उसको प्रिय का पता बताना। -- 16
हवा तनिक भूले पथ जो,
कर देना उस ओर........................। -- 25
देख निशा गहराती जाती, -- 16
बुझती लौ घटती रे बाती। -- 16
लौ तनिक तेज करना,
भरना सुखद अजोर....................। -- 23
सनी नीर से लता माधवी, -- 16
यौवन पूर्ण प्रिया साधवी। -- 15
उसके बाल-व्यूह में उलझा,
अभिमन्यु-नयन किशोर............। -- 28
आशीष भाई, क्या इस तरह से कविताओं और रचनाओं की मात्राओं में स्वतंत्रता ली जाती है ? तो फिर अतुकांत और अगेय कविताएँ करने में क्या बुराई है ?
कृपया इन विन्दुओं पर समझाइयेगा.
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