हिडिम्बा देवी मंदिर
हिमाचल प्रदेश के सुदूर में व्यास नदी के किनारे बसी पर्यटन नगरी मनाली में घने देवदार वृक्षों से आच्छादित है यह मंदिर परिसर | परिसर बहुत साफ-सुथरा है । आसपास छोटी-छोटी गुलाब वाटिकाएँ हैं जिनमें अलग-अलग रंग के फूल खिलखिलाते हुए हैं, मानों भक्तों का स्वागत कर रहे हों | मंदिर के नीचे की ओर ढालान पर नगरपालिका ने भी उद्यान बनाया हुआ है जिसमें बच्चों के खेलने लिए झूले आदि लगे हैं| सन १५५३ में पगोड़ा शैली के इस मंदिर का निर्माण कुल्लू के तत्कालीन राजा राज बहादुर सिंह ने कराया था | पूरा मंदिर लकड़ी का बना है जिसकी छत भी लकड़ी से ही ढाली गई है। दीवारें भी लकड़ी की ही है जिनपर नक्कशी कर देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए है, जो मंदिर की सुन्दरता को बढ़ा देते हैं | मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति प्रतिस्थापित है |
हिडिम्बा एक राक्षसी थी जो अपने भाई हिडिम्ब के साथ रहती थी । उसे अपने भाई हिडिम्ब की वीरता पर बड़ा गर्व था उसने प्रण किया था कि जो उसे पराजित कर देगा उससे में विवाह करुँगी | वनवास के समय पांडवों का यहाँ आना हुआ था । हिडिम्ब से भीम की लड़ाई हुई थी और हिडिम्ब मारा गया | भीम ने हिडिम्बा से गंधर्व विवाह किया और एक बालक को जन्म दिया जो घटोत्कच के नाम से प्रसिद्ध हुआ | घटोत्कच वही है जिसने महाभारत में कर्ण के घातक बाण के प्रहार से अर्जुन की जान बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी | हिडिम्बा राक्षसी थी लेकिन अपने तप और पतिव्रत के बल पर उसे देवी का सम्मान मिला |
कुल्लू के राजा विहंगम दास जो कुल्लू के पहले राजा थे कहते हैं कि वो एक कुम्हार के यहाँ नौकरी करते थे । यह भी कहा जाता है कि देवी ने उसे साक्षात दर्शन देकर राजगद्दी पर बिठा दिया । उन्होंने जालिम ठाकुर राजा का समूल नाश कर डाला | यहाँ के लोग इन्हें अपनी कुल देवी के रूप पूजते हैं | कुल्लू के राजपरिवार के लोग इन्हें अपनी दादी मानते है | आज भी कुल्लू के मेले दशहरे हिडिम्बा देवी का शामिल होना आवश्यक माना गया है | बिना हिडिम्बा देवी की पूजा के पूरी पूजा अधूरी मानी जाती है| मंदिर परिसर में ही घटोत्कच का भी मंदिर है | आज भी लोग उसके बलिदान की गाथा सुनाते हैं |
मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही बड़ी शांति व आनंद की अनुभूति होती है । होगी भी क्यों नहीं ? इस परिसर को देवदार के विशाल वृक्ष अपनी लम्बी-लम्बी शाखाओं से ढके हुए हैं । ये इस स्थल को और भी रमणीक बना देते हैं | इस मंदिर में कोई शोरशराबा नहीं है, कोई लाउड स्पीकर नहीं बजता जिससे यहाँ का वातावरण बड़ा शांत और सुरम्य बना रहता है | दिन में इस मंदिर में कोई खास भीड़भाड़ नहीं होती है । शाम होते ही भक्तों का आना जाना बढ़ जाता है । यहाँ बैठे-बैठे पता ही नहीं लगता कब साँझ ढली और कब रात हो गई | मंदिर में रखी देवी की चरण पादुकाओं को भक्त सिर नवाते हुए अपने ऊपर आनेवाली विपदाओं से छुटकारा पाने का आशीर्वाद लेते हैं | आप भी एक बार अवश्य इस शांति का आनंद लें |
-- गणेश लोहानी
Comment
ठीक हूँ. आप सभी सहयोगियों और शुभचिंतकों की दुआ है.
सादर
आदरनीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम | देर से ही सही बुद्धिजीवियों की पारखी नजर स्केनर का काम करती है | मैं उत्तीर्ण हो गया | सराहना के लिए मैं आपका आभारी हूं | अब कैसी है आपकी तबियत , मौसम के बदलाव से हो सकता है |
आदरणीय गणेशभाईजी, आपका यह यात्रा-संस्मरण हमने पिछले वृहस्पतिवार को ही देखा था किन्तु परिस्थितिवश टिप्पणी नहीं कर पाया था. मैं प्रवास पर था. उसके बाद तबियत थोड़ी नासाज हो गयी.
प्रस्तुत आलेख अत्यंत ही ज्ञानवर्द्धक है तथा कई-कई पहलुओं को साथ ले कर चलता है. आपने इस यात्रा संस्मरण को ओबीओ पर साझा किया इसके लिये हृदय से आभार.
सादर
आदरनीय मित्र श्री भर्मर जी सच में गलती हुई है | आपका नाम तो विशेष तौर पर इसलिए लिया कि आप इस समय उसी छेत्र के भ्रमण पर है | पुन्ह: एक बार सम्मानीय मित्रों राजेश कुमारी जी ,अम्बरीश जी, रेखा जी, दीप्ती जी, अलबेला जी और आपका सरहना के लिए धन्यवाद करता हूँ.|
जय श्री राधे लोहानी जी ..नहीं आप ने बहुत सुन्दर वर्णन किया है .दर्शन हम सब भी किये आप के द्वारा ..आभार ...लेकिन सभी प्रतिक्रियाओं में हमारे अन्य मित्रों पाठकों का नाम आप लेते तो आनंद और आता ..प्रिय अलबेला जी , रेखा जी , दीप्ति जी, अम्बरीश जी ,राजेश कुमारी जी आप सब का बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन हेतु भ्रमर की तरफ से भी
आप सभी मित्रों का आभार | आपको मंदिर का वर्णन अच्छा लगा | भर्मर जी यदि आप यही विचरण कर रहें हैं | तो आप भी इस अलोकिक आनंद को प्राप्त कीजिये |मेरी दी हुई जानकारी में कहीं कोई त्रुटी हो या कोई और जानकारी छूट गई हो तो आप पूरी का देंगे | रसपान लेना और रसज्ञान बाटना तो आपके उपनाम से जुड़ा ही है मनाय्बर | धन्यवाद |
बेहतरीन जानकारी युक्त पोस्ट एवं सुन्दर चित्र
सुंदर जानकारी व चित्र ...एन सी सी के 'अखिल भारतीय पर्वतभ्रमण अभियान' में शम्सी से रोहतांग जोट तक पैदल गया तो हूँ राह में मनाली से भी गुजरा था पर इसे नहीं देख सका था .. साझा करने के लिए शुक्रिया मित्र ....
आपका आभार ,, मैं तो कभी गयी ही नहीं हूँ ... अच्छी जानकारी
गणेश जी ,सौभाग्य से मैने भी इस स्थल पर हिड्म्बा देवी के दर्शन किये हुए है ,आपके आलेख ने वो यादे फिर से ताज़ा कर दी ,आभार
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