मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया
उसके सारे चिन्ह खो गये, कैसा ये बदलाव हो गया
नही रही अब गुरु की गुरुता, नही रहे वो शिष्य महान
काट अँगूठा तक दे देते थे करते गुरु का सम्मान
आज के युग में शिक्षा क्या, बस पैसों का व्यापार हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया
नही रही धुन बाँसुरिया की, जो छेड़ा करती थी तान
कहाँ थाप तबले ढोलक की, कहाँ नगाड़े का है मान
आज कान के परदे फट जाते ऐसा संगीत हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया
कहाँ महत्ता त्यौहारों की, कहाँ बचे उद्देश्य महान
होली मे दुश्मनी भुला जब रंगा जाता हिन्दुस्तान
अब रंगो की जगह मद्य मे डुबना ही त्यौहार हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया
आशीष यादव
Comment
बहुत खूबसूरत आशीष भाई ...........................इस देश भक्ति के जज्बे को सलाम
//नही रही अब गुरु की गुरुता, नही रहे वो शिष्य महान
काट अँगूठा तक दे देते थे करते गुरु का सम्मान
नही रही धुन बाँसुरिया की, जो छेड़ा करती थी तान
कहाँ थाप तबले ढोलक की, कहाँ नगाड़े का है मान
कहाँ महत्ता त्यौहारों की, कहाँ बचे उद्देश्य महान
होली मे दुश्मनी भुला जब रंगा जाता हिन्दुस्तान//
खोये हुए संस्कारों को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से बहुत सुंदर गीत रचा है आपने ...... बहुत बहुत बधाई मित्र.....सस्नेह
आशीष जी
सादर, सांस्कृतिक विकृति के उत्थान पर चिंता की लकीरें खींचती सुन्दर रचना. बधाई.
THANK YOU DEEPTI JI.....
आदरणीय अलबेला खत्री जी, कविता पसन्द आयी आपको मै धन्य हुआ।
बहुत-बहुत धन्यवाद
क्या बात है........
बहुत सफल रचना ......
अब रंगो की जगह मद्य मे डुबना ही त्यौहार हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया
__बधाई हो !
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala जी
देश भक्ति के जज्बे को सलाम आशीष यादव जी
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